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________________ तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन 113 मम्मट (11वीं शती) के अनुसार उपमान तथा उपमेय का भेद होने पर उनके समान धर्म का वर्णन उपमा कहलाता है। वह उपमा दो प्रकार की कही गयी है- (1) लुप्तोपमा (2) पूर्णोपमा । उपमा में उपमान, उपमेय, साधारण धर्म तथा वाचक शब्द, इन चार तत्वों का समावेश होता है इन चारों के शब्दतः उपस्थित रहने पर पूर्णोपमा होती है तथा लुप्तोपमा में इन चारों में से किसी न किसी का लोप रहता है। (1) लुप्तोपमा-लुप्तोपमा का एक सुन्दर उदाहरण तिलकमंजरी में मिलता है –'कुन्दनिमला ते स्मिता तिः' (पृ. 113) इसमें वाचक शब्द लुप्त है। इसी प्रकार-'कुसुमायुध इव आयुधद्वितीयः' (पृ. 19) इसमें उपमेयभूत मेघवाहन का शब्दतः उल्लेख नहीं किया गया है अतः यह लुप्तोपमा है। (2) पूर्णोपमा-यह श्रोती तथा आर्थी, इन दो प्रकार की कही गयी है । यथा, इव, वा का प्रयोग होने पर श्रौती उपमा होती है तथा तुल्य, सदृश आदि के प्रयोग होने पर आर्थी उपमा होती है। (अ) श्रौती पूर्णोपमा लक्ष्मी के वर्णन में श्लेषोत्थापित श्रौती पूर्णोपमा का उदाहरण मिलता है-"अनेक तथा विस्तृत पत्तों के फणावलय से सुशोभित, लम्बे विशाल मृणालदण्ड के शरीर से युक्त तथा चन्द्रमा की पाण्डुवर्ण कान्ति वाले कमल पर बैठी हुई लक्ष्मी शेषनाग पर स्थित पृथ्वी के समान जान पड़ती थी। (आ) आर्थी पूर्णोपमा-का सुन्दर उदाहरण प्रातःकाल के वर्णन में प्राप्त होता है-"प्रभातकाल में तारे पके हुए अनार के दाने के समान (लाल) हो गये हैं, अंधकार के जीर्णतन्तु पलालों से तुलनीय हो गये हैं तथा पश्चिम दिशा की भित्ति पर स्थित ज्योतिहीन, पाण्डुवर्णी पूर्णचन्द्र का बिम्ब मकड़ी के जीर्ण जाले के समान प्रतीत होता है ।"5 ये सभी उपमान धनपाल की मौलिक व असाधारण प्रतिभा के प्रतीक हैं। 1. मम्मट, काव्याप्रकाश, साधर्म्यमुपमाभेदे, 10, 124 2. पूर्णालुप्ता च -वी, 10, 125 मम्मट, काव्यप्रकाश, 10-126 4. विततदलसहस्रफणावलयशोभिनि पृथुलदीर्घनालभोगे शेषभुजग इव मेदिनीमिन्दुकरपाण्डुरत्विषि पुण्डरीके कृतावस्थानाम्....... -तिलकमंजरी. पृ. 54 जाता, दाडिमबीजपाकसुहृदः सन्ध्योदये तारकाः यान्ति प्लुष्टजरत्पलालतुलनां तान्तास्तमस्तन्तवः । ज्योत्सनापायविपाण्डु मण्डलमपि प्रत्यड्नभोभित्तिभाक्पूर्णेन्दोजरदर्णनाभनिलयप्रागल्भ्यमभ्यस्यति ॥ -तिलकमंजरी, पृ. 238
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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