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________________ तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन 111 तथा रक्षण में अत्यन्त आग्रह युक्त होकर बीता। 1 यहां 'कांची" शब्द में श्लेष है, कांची का नगरी तथा करधनी अर्थ है। तारक की नौ-अभ्यर्थना में श्लेष के द्वारा नौ के बहाने से मलयसुन्दरी से प्रणय-याचना की गयी है। यह प्रसंग धनपाल के श्लेष-प्रयोग की निपुणता प्रदर्शित करता है। पुनरक्तवदामास-विभिन्न आकार वाले शब्दों में समानार्थकता न रहते हुए भी जो समानार्थता की सी प्रतीति होती है। वह पुनरुक्तवदाभास अलंकार है। इसमें पहले पुनरुक्ति में प्रतीति होती है किन्तु अंत में नहीं रहती। यथा-धूर्जटिललाटलोचनाग्निनेव हृदयेनानंगीकृतकंदर्पयोः इसमें 'अनंग' तथा 'कन्दर्प' में पुनरुक्ति सी प्रतीत होती है। , अर्थालंकार विभिन्न आलंकारिकों ने अर्थालंकारों के अनेक भेद परिगणित किए हैं, तथा वे इनकी संख्या के विषय में एक मत नहीं है। वस्तुतः सभी अलंकारों के मूल में चार बातें हैं, जिनके आधार पर अनेक भेद-प्रभेद बनते हैं । आचार्य रुद्रट के मत में (1) वास्तव (2) ओपम्य (3) अतिशय तथा (4) श्लेष इन चार तत्वों के मूल में सभी अर्थालंकार समा जाते हैं। कुछ अलंकार वास्तविकता पर आधारित होते हैं, कुछ ओपम्य मूलक होते हैं, कुछ अतिशय व्यंजक होते हैं तथा कुछ श्लेष पर आधारित होते हैं । वस्तु के यथावत् स्वरूप का चित्रण वास्तव में है। सहोक्ति, सम्मुचय, यथासंख्य, भाव, पर्याय, विषम, दीपक आदि अलंकार वास्तव जाति में परिगणित होते हैं। जहां वस्तु के सम्यक् वर्णन के लिए उसी के समान अन्य वस्तु का उल्लेख किया जाता है, वहां औपम्य माना जाता है । उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अपहुति, संशय, समासोक्ति, अर्थान्तरन्यास, दृष्टान्त आदि अलंकार इस श्रेणी में आते हैं।' किसी वस्तु को उसके प्रसिद्ध स्वरूप से भिन्न अलौकिक ढंग से कहना अतिशय कहा जाता है । इस वर्ग में अतिशयोक्ति, विशेष, तद्गुण, विषम आदि 1. एवं च कांचीग्रहण रक्षणविधावधिरूढगाढाभिनिवेशयोराभिनवोढदम्पत्तिकरपल्लवयोः -तिलकमंजरी, पृ. 83 वही, पृ. 283-286 पुनरूक्तवदामासो विभिन्नाकारशब्दगा एकार्थतेव । -मम्मट काव्यप्रकाश, 9/121 4. तिलकमंजरी, पृ. 104 रूद्रट, काव्यालंकार 7/9 6. रूद्रट, काब्यालंकार 7/10 7. वही, 8/1
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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