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________________ ४० श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन रचयिता : रचनाकाल उत्तमकुमारचरित के रचयिता चारुचन्द्र हैं जो भक्तिलाभ के शिष्य थे। ये १६वीं शताब्दी के विद्वान् हैं । १३५. सुलोचनाचरित : (भट्टारक वादि चन्द्र) सुलोचनाचरित में ९ परिच्छेद हैं । यह एक कथात्मक काव्य है । १३६. यशोधरचरित : (भट्टारक वादि चन्द्र ) यशोधरचरित में महाराज यशोधर का चरित वर्णित है । रचयिता : रचनाकाल उक्त सुलोचनाचरित तथा यशोधरचरित के रचयिता भट्टारक वादिचन्द्र हैं। ये वादिचन्द्र, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण की सूरत शाखा के थे । ये भट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्ट पर आसीन हुये थे । 1 प्रो० विद्याधर जोहरापुरकर ने इनका समय वि० सं० १६३७-१६६४ (१५८०-१६०७ ई०) माना है । डा० नेमिचन्द्र शास्त्री भी यही समय मानते हैं । १३७. भुजबलिचरित' : (दोडुय्य) इस संस्कृत चरित के कवि ने पुराण प्रसिद्ध श्री बाहुबलि की मैसूर राज्यान्तर्गत श्रवणबेलगोलस्थ लोकविख्यात आश्चर्यकारी अलौकिक अनुपम दिव्य मूर्ति के इतिहास को सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है । रचयिता : रचनाकाल भुजबलिचरित के रचयिता दोड्डय्य हैं। जैन सिद्धान्त भास्कर में प्रकाशित भुजबलिचरित भूमिका में कहा गया है कि आत्रेय गोत्रीय जैन विप्रोत्तम पंडित मुनि के शिष्य परियपट्टन के निवासी करणितिलक देवय्य के पुत्र १६वीं शताब्दी के कवि दोड्डय्य का यह भुजबलिचरित, भुबलिशतकम् के नाम से भी प्रसिद्ध है । सप्तदश शताब्दी १३८. पाण्डवचरित : (देव विजय गणि) पाण्डवचरित गद्यात्मक ग्रन्थ है । इसमें १८ सर्ग हैं । यह देवप्रभसूरि के पाण्डवचरित का सरल संस्कृत गद्यरूप की तरह जान पड़ता है । कहीं-कहीं तो उसके पद्य भी उद्धत किये गये हैं । I १. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ०-२०१ २. तीर्थर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग-४, पृ०-७२ ३. जैन सिद्धान्त भास्कर भाग - १०, वि० सं० २००० के परिशिष्ट में श्री पी० के० भुजबली शास्त्री विद्याभूषण के सम्पादकत्व में प्रकाशित ४. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला बनारस वी० नि० सं० २४३८ में प्रकाशित
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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