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________________ जैन चरित काव्य : उद्भव एवं विकास के लिए नागकुमार का चरित निबद्ध किया गया है । नागकुमार जैन परम्परानुसार २२वें कामदेव हैं । काव्य सरल और भाषा प्रवाहमयी है । भावनाओं का बड़ा ही सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत है । रचयिताः : रचनाकाल इस काव्य के रचयिता मल्लिषेण हैं, जो जिनसेन के शिष्य और कनकसेन के प्रशिष्य थे। नागकुमार चरित की प्रशस्ति में मल्लिषेण ने अपने गुरु का नाम नरेन्द्रसेन लिखा है। ये नरेन्द्रसेन जिनसेन के भाई थे। अतः सम्भव है कि दोनों ही भाई इनके गुरु रहे हें। मल्लिष्ण ने अपने महापुराण की समाप्ति शक सं० ९६९ (सन्१०४७ ई०) में की थी। कादिराज ने (सन् १०२५ ई०) में इनके गुरु नरेन्द्रसेन का उल्लेख किया है। अतः वादिराज के समकालीन या कुछ ही पश्चाद्वर्ती ये रहे होंगे, ऐसा निश्चित है। द्वादश शताब्दी १४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित : (हेम चन्द्र) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में जैन धर्ममान्य तिरसठ शलाकापुरुषों का चरित वर्णित है यह १० पों में विभक्त काव्य रचना है । अन्तिम पर्व सबसे विशाल है, जिसमें तीर्थकर मावीर का जीवन चरित वर्णित है । वास्तव में इसे काव्य न कहकर पुराण कहा जाना चाहिये। १५. कुमारपालचरित' : हिम चन्द्र) इस काव्य के १८ सर्ग हैं, जिसमें १० संस्कृत भाषा में तथा ८ प्राकृत में लिखे गये हैं। इसको यात्रय महाकाव्य भी कहते हैं। यह एक ऐतिहासिक.महाकाव्य है। यह काव्य चालुक्य वंशीय नरेश कुमारपाल पर लिखा गया है । कुमारपाल पर जैनों ने अनेक काव्य लिखे हैं । यद्यपि ये शैव थे, परन्तु जैनधर्म में उनकी अगाध श्रद्धा थी। रचयिता : रचनाकाल उक्त दोनों चरितकाव्यों (त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, कुमारपालचरित) के रचयिता हेमचन्द्र हैं, जो गुर्जर नरेश सिद्धराज जयसिंह के समकालीन प्रसिद्ध श्वेताम्बर विद्वान् थे । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसकी रचना इन्होंने चालुक्य राजा कुमारपाल के अनुरोध पर की थी। डा० दुल्हर ने इसकी रचना का समय वि० सं० १२१५-१२२८ माना है । १.नागकुमारचरित, प्रशस्ति पद्य, ४-५ २.महापुराण पध-२ ३.शुद्धयनीतिनरेन्द्रसेनमकलंकवादिराजं सदा । श्रीमत्स्वामिसमन्तभद्रमतुलं वन्दे जिनेन्द्रं मुदा ।। -न्यावविनिश्चयविवरण प्रशस्ति पद्य २ का उत्तरार्ध ४.जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर से प्रकाशित १९०६ से १९१३ ई० तक ५.भाण्डारकर ओरियंटल सीरीज पूना १९३६ ई०, द्वितीय संस्करण ६० - कुमारपाल-चरित, पर्व१०,प्रशस्ति पद्य,१६-२० ७.जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-६, पृ०-७६
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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