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________________ नेमिनिर्वाण : भाषा शैली एवं गुणसन्निवेश १६७ गुणों के स्वरूप का विवेचन अधिक विस्तार से किया है । गुणों के अतिरिक्त काव्य के दो मार्ग भी बताये - वैदर्भ और गौड़ । गुण इन्ही के प्राणभूत हैं । दण्डी ने श्लेष आदि दश गुण वैदर्भ मार्ग में और इनके विपरीत गुण गौड़ मार्ग में माने हैं । ___ अग्निपुराण में कहा गया है कि जो तत्त्व काव्य में महती छाया उत्पन्न करते हैं वे गुण हैं । उसमें शब्द गुण, अर्थगुण और उभयगुण माने हैं । वामन ने रीतियों के साथ-साथ गुणों के साक्षात् सम्बन्ध को प्रतिपादित किया है । वे रीति को काव्य की आत्मा तथा रीतिं की आत्मा गुण को मानते हैं । वामन ने गुणों की संख्या बीस मानी हैं, उनमें दश शब्द गुण और दश अर्थ गुण हैं। परन्तु परवर्ती आचार्य मम्मट और विश्वनाथ ने गुणों की संख्या तीन ही स्वीकार की है - माधुर्य, औज और प्रसाद । इन्होंने बताया कि उन तीन गुणों में ही अन्य सभी गुणों का अन्तर्भाव हो जाता है । विश्वनाथ ने भी लिखा है कि माधुर्य, ओज और प्रसाद ये तीन ही गुण हैं । ____ अतः गुण तीन ही माने जाते हैं - माधुर्य, ओज और प्रसाद । नेमिनिर्वाण में इन तीनों ही गुणों का प्रयोग हुआ है। ___ माधुर्य : चित्त को पिंघलाने वाले द्रवीभूत करने वाले आनन्ददायी प्रमुख गुण को माधुर्य कहते हैं । यह संभोग श्रृंगार, करुण, विप्रलम्भ श्रृंगार और शान्त रस में क्रमशः अधिक मधुर हो जाता है । माधुर्य गुण के अभिव्यंजक में ट, ठ, ड, ढ को छोड़कर (क से म पर्यन्त) अपने वर्गों के अन्तिम वर्णों से युक्त वर्ण तथा लघु र, ण वर्ण और समास रहित या छोटे-छोटे समासों वाली रचना सहायक है । नेमिनिर्वाण में माधुर्य गुण का अनेक स्थानों पर अनेक रूपों में प्रयोग हुआ है । विशेष रूप से विप्रलम्भ श्रृंगार का यह उदाहरण देखिये - इन्दोर्दीप्त्या दत्तदाहातिरेका यद्यच्छु_ तत्र तत्रापरक्ता । सा कपूरं दन्तजं कर्णपूरं हारं हासं चेति सर्वव्यहासीत् ।। १. श्लेषः प्रसादः समता माधुर्य सुकुमारता । अर्थव्यक्तिरुदारत्वमोजः कान्तिः समाधयः ।। इति वैदर्भमार्गस्य प्राणाः दश गुणाः स्मृताः। - काव्यादर्श, १/४१-४२ २. यः काव्ये महती छायामनुग्रंयति असौ गुणः। - अग्निपुराण, ३४६/३ ३. रीतिरात्मा काव्यस्य । विशिष्टा पदसंघटना रीतिविशेषगुणात्मा। - काव्यालंकारसूत्रवृत्ति, १/२-६-८ ४. माधुर्योजः प्रसादाख्यस्त्रयस्ते न पुनर्दशः।- काव्यप्रकाश, ८/६६ ५. माधुर्यओजोऽथप्रसाद इति ते त्रिधा - साहित्यदर्पण, ८/१ ६. चित्तद्रवीभावमयोऽऽह्लादो माधुर्यमुच्यते। संभोगे करुणे विप्रलम्भे शान्तेऽधिकं क्रमात् ।। - साहित्यदर्पण, ९/२ ७. मूर्षि वर्गान्त्यगाः स्पर्शा अटवर्गा रणौ लघू । अवृतितमध्यवृत्तिर्वा मधुर्ये घटना तथा। - काव्यप्रकाश, ८/७४ ८. नेमिनिर्वण, ११/९
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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