SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन अहा! कितनी मनोहारिणी है यह जलराशि । इसके किनारे पर सीधे सीधे धूप के (काष्ठ विशेष) वृक्ष खड़े हुये हैं । यहाँ हरिण वायु के समान तीव्र वेग से दौड़ते हैं और यहाँ पर लक्ष्मी भी कमलों में स्थान पाकर हर्षोल्लास से भर जाती है। ___ इस पद्य में सरला, हरिणा और परमा आदि पदों की आवृत्ति से यहाँ संयुतावृत्तिमूलक अन्त यमक है। आदि यमक अलंकार : चारों पदों के आदि में एक पद की आवृत्ति हो और ये पद आपस में दूर-दूर हों तो “अयुतावृत्तिमूलक आदियमक" अलंकार होता है । यथा नेमिनिर्वाण में - कान्तारभूमौ पिककामिनीनां कां तारवाचं क्षमते स्म सोढुम् । कान्ता रतेशेऽध्वनि वर्तमाने कान्तारविन्दस्य मधोः प्रवेशे ।।२ जब किसी सुन्दरी का पति परदेश में हो, (उसके पास न हो) चैत्र मास, कमल और वसन्तादि उद्दीपक उपकरणों से सजकर आ जाए, तो वह बेचारी वन प्रदेश में कल कुंजन करने वाली कोकिला की ऊँची तान को सुन सकने में कैसे समर्थ हो सकती है? (वह तो विरह से तडप उठेगी ।। इस श्लोक के चारों पादों के आदि में ‘कान्तार' पद की आवृत्ति है और ये सभी पद एक दूसरे से दूर हैं । अतः- यह “अयुतावृत्तिमूलक आदिपद यमक” है। अन्तयमक अलंकारः- चरण के अन्त में आने वाली पद की बार-बार आवृत्ति होने से 'अयुतावृत्तिमूलक अन्तयमक' होता है । यथा नेमिनिर्वाण में - भूरिप्रभानिर्जितपुष्पदन्तः करायतिन्यक्कृतपुष्पदन्तः ।। त्रिकालसेवागतपुष्पदन्तः श्रेयांसि नो यच्छतु पुष्पदन्तः ।। इस उदाहरण में चरण के अन्त में आने वाले 'पुष्पदन्त' पद की बार बार आवृत्ति होने से यहाँ पर 'अयुतावृत्तिमूलक अन्तपदयमक' अलंकार है। अयुतावृत्तिआदिमध्यगोचरयमक : जहाँ आदि पाद की आवृत्ति भिन्नार्थक तृतीय पाद में हुई हो तथा उनके बीच में द्वितीय पाद आ जाने से व्यवच्छेद उत्पन्न हो जाता है, वहाँ 'अयुतावृत्तिमूलक आदिमध्यपाद यमक' होता है । यथा नेमि निर्वाण में - मधुरेणदृशां चक्रे शशिना मानविप्लवम् । ___ मधुरेण दृशां चक्रे मन्मथज्वलितात्मनि ।। यहाँ आदि पाद की आवृत्ति भिन्नार्थक तृतीय पाद में हुई है, जिससे बीच में द्वितीय पाद आ जाने व्यवच्छेद उत्पन्न हो गया है । १. वाग्भटालंकार चतुर्थ परिच्छेद, पृ० ५४ ३. वाग्भटालंकार चतुर्थ परिच्छेद, पृ० ५५ ५५. वाग्भटालंकार चतुर्थ परिच्छेद, पृ० ५१ २. नेमिनिर्वाण, ६/४६ ४. नेमिनिर्वाण, १/९ ६. नेमिनिर्वाण, ६/४८
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy