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________________ नेमिनिर्वाण का संवेद्य एवं शिल्प : अलंकार १५५ यहाँ दूसरे पाद की आवृत्ति चतुर्थ पाद में है और इन दोनों के बीच में तृतीय पाद आ जाने से यहाँ पर अयुतावृत्तिमूलक द्वितीय चतुर्थ पाद यमक अलंकार है । ___ महायमक : जहाँ प्रथम पाद की आवृत्ति, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ पाद में हो, वहाँ महायमक होता है । नेमिनिर्वाण के इस श्लोक में महायमक अलंकार है, जो बड़ा ही मनोहर बन पड़ा है - रम्भारामा कुरबकमलारम्भारामा कुरबककमला । रम्भा रामाकुरवक कमलारम्भारामाकुरवककमला । । हे रक्षक! कदली वन की वह भूमि अत्यन्त रमणीय है, क्योंकि उसमें कमलों का समूह है, सुन्दर कुरबक वृक्षों का कुंज है, मनोहारिणी सुन्दरियाँ हैं, बकपंक्ति से रहित निर्मल एवं रमणीक जलराशि है और मनोहर शब्द करने वाला हरिणयूथ भी है । इस श्लोक में प्रथम पाद की आवृत्ति द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ पाद में है, अतएव यह ‘महायमक' अलंकार है । मध्यम यमक : __ संयुतावृत्तिमूलक मध्यमपद यमक : जहाँ आदि मध्य पदों की व्यवधान रहित आवृत्ति हो वहाँ संयुतावृत्तिमूलक यमक होता है । नेमिनिर्वाण के निम्न श्लोक में इस यमक का निर्वाह हुआ है - नेमिर्विशालनयनो नयनोदितश्रीरभ्रान्तबुद्धिविभवो विभवोऽथ भूयः । प्राप्तस्तदेति नगरानगराजि तत्र सूतेन चारु जगदे जगदेकनाथः ।।' संसार के एकमात्र स्वामी दीर्घनयन स्वामी नेमिनाथ जी, जिन्होंने अपनी नीति से धनोपार्जन किया और जिनका ऐश्वर्य सदैव स्थित रहने वाला है तथा जो जन्म-मरण आदि से युक्त संसार-चक्र से परे हैं, वें जब सारथी द्वारा नगर से पर्वत पर ले जाये गये तो सारथी ने उनसे बार-बार सुन्दर वचन में कहा यहाँ नयनो, जगदे और विभवो आदि मध्य पदों की व्यवधान रहित आवृत्ति से 'संयुतावृत्तिमूलकमध्यपद यमक' है । अन्त यमक : संयुतावृत्तिमूलक अन्तपद यमक : जहाँ अन्त पदों की आवृत्ति हो वहाँ संयुतावृत्तिमूलक अन्त पद यमक होता है । नेमिनिर्वाण के निम्न श्लोक में यह देखा जा सकता है - यदुपान्तिकेषु सरलाः सरला यदनूच्चलन्ति हरिणा हरिणाः । तदिदं विभाति कमलं कमलं मुदमेत्य यत्र परमाप रमा ।।। १. वाग्भटालंकार चतुर्थ परिच्छेद, पृ० ५६ २. नेमिनिर्वाण, ७/५० ३. वाग्भटालंकार चतुर्थ परिच्छेद, पृ० ५४ ४. नेमिनिर्वाण, ६/५१ ५. वाग्भटालंकार चतुर्थ परिच्छेद, पृ० ५४६ . नेमिनिर्वाण, ७/२५
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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