SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ श्रीमद्वाग्भटविरचितं नेमिनिर्वाणम् : एक अध्ययन अहौ वा हारे वा कुसुमशयने वा दृषदि वा मणौ वा लोष्ठे वा बलवति रिपौ वा सुहृदि वा । तृण वा स्त्रैणे वा मम समदृशो यान्ति दिवसाः । क्वचित् पुण्यारण्ये शिव शिव शिवेति प्रलपतः । । सांप अथवा मुक्ताहार में, फूलों की सेज अथवा पत्थर की शिला में, मणि अथवा ढेले में, बलवान् शत्रु अथवा मित्र में, तिनके में अथवा स्त्रियों के समूह में समान दृष्टि रखने वाले मेरे दिन “शिव शिव शिव” ऐसा प्रलाप करते हुए बीतते हैं । श्रृंगारादि नव रसों में कौन प्रधान है, इस सम्बन्ध में आचार्यों में मतभेद है। भोजराज श्रृंगारप्रकाश में श्रृंगार को, भवभूति ने उत्तररामचरित में करुण को तथा कुछ लोगों ने चमत्कृति के आधिक्य के कारण अद्भुत रस को प्रकृति रस एवं अन्य रसों को विकृति माना है । आचार्य अभिनवगुप्त शान्त रस को प्रकृति रस मानते हैं । ( तत्र सर्वरसानां शान्तप्राय एवास्वादः - अभिनवभारती) । नाट्यशास्त्र के कुछ संस्करणों में उपलब्ध निम्नांकित पंक्तियाँ शान्त के रसराजत्व की ओर स्पष्ट संकेत करती है : “भावा विकारा रत्याद्याः शान्तस्तुप्रकृतिर्मतः । विकारः प्रकृतेर्जातः पुनस्तत्रैव लीयते ।। स्वं स्वं निमित्तमासाद्य शान्ताद् भावः प्रवर्तते । पुनर्निमित्तापाये च शान्त एवोपलीयते । ।२ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में चतुर्थ पुरुषार्थ ही मानव जीवन का साध्य है। धर्म, अर्थ और काम इन तीन पुरुषार्थों की पराकाष्ठा विषयभोगों के प्रति विरक्ति उत्पन्न करती है । तब मनुष्य विषयभोगों को विनाशीक और अनात्मनीन समझने लगता है । अतः शान्त रस ही मुख्य रस है और उसका रसराजत्व सिद्ध है । उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शान्त रस की मान्यता निर्विवाद है ईसा की प्रथम शताब्दी में शान्तरस की प्रतिष्ठा थी । शान्तरस का स्थायीभाव नित्य वैराग्य या शम है। नव रसों में इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है । नेमिनिर्वाण में अंगी रस शान्त है और अंग रूप में अन्य रसों का भी समावेश हुआ है। शान्त रस ( अंगीरस) : धर्म, अर्थ, काम मोक्ष, ये चारों पुरुषार्थ ही मानव के साध्य हैं। धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरुषार्थों की पराकाष्ठा विषय भोगों के प्रति विरक्ति उत्पन्न करती है और मनुष्य इन्हें विनाशीक समझने लगता है तथा मोक्षगामी होने की इच्छा करने लगता है । १. काव्य प्रकाश, चतुर्थ उल्लास, उदाहरण, ४४ २. नाट्यशास्त्र ( गा० ओ० सी०, बड़ौदा संस्करण), ६.३३५-३३६
SR No.022661
Book TitleNemi Nirvanam Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAniruddhakumar Sharma
PublisherSanmati Prakashan
Publication Year1998
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy