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________________ 56 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण आत्मा जीव है - जो वर्तमान, भूतकाल, भविष्यत तीनों कालों में जीवित रहे उसे जीव कहते हैं और सिद्ध भगवान अपनी पूर्वपर्यायों में जीवित थे इसलिए वे भी जीव कहलाते हैं। आत्मा प्राणी है - पाँच इन्द्रिय, तीन बल, आयु और श्वासेच्छ्वास ये दस प्राणी जीव में विद्यमान हैं इसलिए प्राणी कहलाता है।99 आत्मा जन्तु है - जो बार-बार अनेक जन्म धारण करने वाले हों वह जन्तु हैं।100 आत्मा क्षेत्रज्ञ है - जो जीव को जानता है वह क्षेत्रज्ञ कहा जाता है।101 __आत्मा पुरुष है - पुरु अर्थात् अच्छे-अच्छे भोगों में शयन या प्रवृत्ति करने से पुरुष कहा जाता हैं। 02 आत्मा पुमान् है - जो अपनी आत्मा को पवित्र करता है इसलिए पुमान् भी कहा जाता है।103 आत्मा आत्मा है - जो जीव नर-नरकादि पर्यायों में अर्थात् निरन्तर गमन करता है इसलिए आत्मा कहा जाता है।104 आत्मा अन्तरात्मा है - ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के अन्तर्वर्ती होने से अन्तरात्मा भी कहा जाता है।105 आत्मा ज्ञ है - ज्ञानगुण से सहित होने से ज्ञ कहलाता है।106 आत्मा ज्ञानी है - ज्ञान गुण के कारण ज्ञानी भी कहा जाता है।107 जीव की अवस्थाएँ जीव की दो अवस्थाएँ होती हैं - 1. संसारी जीव, 2. मुक्त जीव 1. संसारी जीव - नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव इन चार भेदों से युक्त संसाररूपी भंवर में परिभ्रमण करने वाला जीव संसारी जीव है। संसारी जीव कर्मबद्ध होने के कारण अनेक योनियों में परिभ्रमण करती है।, कर्म करती है तथा उनका फल भोगती है, कुन्दकुन्दाचार्य की मान्यता है कि संसारी जीव अनादि काल से कर्मों से बद्ध है। इसी कारण संसारी जीव है तथा आत्मा वस्तुत: सिद्ध समान है। इसलिये इसे बद्ध भी कहा जाता है। चारों गतियों में परिवर्तन करते रहना इस जीव का संसारावास कहलाता है।106
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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