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आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें
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व्यक्ति परलोक की इच्छा के लिए तप और अनेक अनुष्ठान करते हैं वे सब व्यर्थ हैं। जीव यथार्थज्ञान से रहित हैं। जिस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में मरुभूमि पर दिखाई देने वाली सूर्य की चमकती किरणों को जल समझकर मृग व्यर्थ ही दौड़ता है उसी प्रकार ये भोग-अभिलाषी मनुष्य परलोक के सुखों को वास्तविक सुख समझकर व्यर्थ ही दौड़ा करते हैं। इसी प्रकार जीव नामक कोई पदार्थ नहीं।95 यह सिद्धान्त भी व्यर्थ हैं क्योंकि तात्पर्य यह है कि यदि शून्यता प्रतिपादन वचन और विज्ञान को स्वीकार करते हैं तो वचन और विषयभूत-जीवादि समस्त पदार्थ भी स्वीकृति करने पड़ेंगे। इसलिए शून्यवाद नष्ट हो जायेगा यदि वचन तथा विज्ञान को स्वीकृत नहीं करते हैं तब शून्यवाद का समर्थन व मनन किसके द्वारा करेंगे। इसलिए जीव शरीर से पृथक् पदार्थ है तथा दया, संयम आदि लक्षण वाला धर्म भी अवश्य है।
जीव की उपलब्धि में अनुपलब्धि हेतु नहीं
जीव का अभाव सिद्ध करने के लिए जो अनुपलब्धि हेतु दिये गये हैं वह असत् हेतु हैं क्योंकि उसमें हेतु सम्बन्धी अनेक दोष पाये जाते हैं। उपलब्धि पदार्थों के सद्भाव का कारण नहीं हो सकती क्योंकि अल्प ज्ञानियों को परमाणु आदि सूक्ष्म, राम, रावण आदि अन्तरित तथा मेरु आदि दूरवर्ती पदार्थों की जो उपलब्धि नहीं होती। परन्तु इन सबका सद्भाव माना जाता है इसलिए जीव का अभाव सिद्ध करने के लिए जो हेत दिया है वह व्यभिचारी है। जिस प्रकार पिता, पितामह, प्रपितामह आदि के सद्भाव में सभी एक मत लगते हैं, उसी प्रकार जीव का भी सद्भाव स्वतः सिद्ध है। यदि जीव का अभाव है. अनुपलब्धि होने से, तो ऐसे कितने ही सूक्ष्म पदार्थ है जिनका अस्तित्व तो हैं परन्तु उपलब्धि नहीं होती। जैसे जीव अर्थ को कहने वाले "जीव" शब्द और उसके ज्ञान का जीवज्ञान सद्भाव माना जाता है, उसी प्रकार उसके वाच्यभूत बाह्य जीव अर्थ के भी सद्भाव को मानने में क्या हानि है। क्योंकि जब "जीव" पदार्थ ही नहीं होता तो उसके वाचक शब्द कहाँ से आते और उनके सुनने से वैसा ज्ञान भी कैसे होता। जीव शब्द अभ्रान्त बाह्य पदार्थ की अपेक्षा रखता है क्योंकि वह संज्ञा वाचक शब्द है। जो-जो संज्ञावाचक शब्द होते हैं, वे किसी संज्ञा से अपना सम्बन्ध रखते हैं जैसे लौकिक घट आदि शब्द।
आत्मा के पर्याय
जीव, प्राणी, जन्तु. क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान्, आत्मा, अन्तरात्मा, ज्ञ और ज्ञानी आत्मा के पर्यायवाची कहे गये हैं