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________________ आदिपुराण में तत्त्व विमर्श व जीव तत्त्व विषयक विचारधारायें 45 पुद्गल का एक परमाणु जितना स्थान (आकाश) घेरता है, उसे प्रदेश कहते हैं। यह एक प्रदेश का परिमाण है। इस प्रकार के अनेक प्रदेश जिस द्रव्य में पाए जाते हैं, वह द्रव्य अस्तिकाय कहा जाता है। प्रदेश का परिमाण एक प्रकार का नाप है। इस नाप से पुद्गल के अतिरिक्त अन्य पाँचों द्रव्य भी नापे जा सकते हैं। यद्यपि जीवादि अरूपी है, किन्तु उनकी स्थिति आकाश में हैं और आकाश स्वप्रतिष्ठित हैं। अत: उनका परिमाण समझने के लिए नापा जा सकता है। यह उचित है कि पुद्गल द्रव्य को छोड़कर शेष द्रव्यों का इन्द्रियों से ग्रहण नहीं हो सकता, किन्तु बुद्धि से उनका परिमाण नापा एवं समझा जा सकता है। धर्म, अधर्म, आकाश पुद्गल और जीव के अनेक प्रदेश होते हैं। अत: ये पाँचों द्रव्य अस्तिकाय कहे जाते हैं। इन प्रदेशों को अवयव भी कह सकते हैं। अनेक अवयव वाले द्रव्य अस्तिकाय हैं। अद्धासमय अर्थात काल के स्वतन्त्र निरन्वय प्रदेश होते हैं। वह अनेक प्रदेशों वाला एक अखण्ड द्रव्य नहीं हैं, अपितु उसके स्वतन्त्र अनेक प्रदेश हैं। प्रत्येक प्रदेश स्वतन्त्र-स्वतन्त्र रूप से अपना कार्य करता है। उनमें एक अवयवी की कल्पना नहीं की गई, अपितु स्वतन्त्र रूप से सारे काल प्रदेशों को भिन्न-भिन्न द्रव्य माना गया है। इस प्रकार ये काल द्रव्य एक द्रव्य न होकर अनेक द्रव्य हैं। लक्षण की समानता से सबको "काल" ऐसा एक नाम दे दिया गया। धर्मादि द्रव्यों के समान काल एक द्रव्य नहीं है। इसलिए काल को अनस्तिकाय कहा गया। अस्तिकाय और अनस्तिकाय का यही स्वरूप है।40 द्रव्य का अस्तिकाय और अनस्तिकाय रूप से इस प्रकार प्रदर्शित किया गया है द्रव्य . अस्तिकाय अनस्तिकाय काल 1. जीव 2. पुद्गल 3. धर्म 4. अधर्म 5. आकाश
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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