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________________ आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि हजार श्लोक प्रमाण हैं। इसके प्रारम्भ की 20 हजार श्लोक प्रमाण टीका वीरसेन स्वामी द्वारा रचित है और शेष 40 हजार जिनसेन स्वामी द्वारा निर्मित है। 20 हजार टीका लिख चुकने पर गुरु का स्वर्गवास हो गया। तदनन्तर शिष्य ने उसे पूरा किया। 22 जयधवला टीका को जिनसेन स्वामी ने "वीरसेनीया टीका" भी लिखी है, जो कि उनके गुरु के कर्तृत्व को प्रकट करती है। उसका एक तिहाई भाग तो गुरुकृत है ही, शेष भाग भी उन्हीं के आदेश और सूचनाओं के अनुसार लिखा गया है। उक्त दोनों टीका ग्रन्थ राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष (प्रथम) के समय में रचे गये थे और अमोघवर्ष का एक नाम "धवल" या "अतिशय धवल" भी इसी का नाम था, इसलिए यह स्पष्ट रूप से अनुमान होता है कि इनका नामकरण उन्हीं के नाम को चिरस्थायी करने के लिए किया गया होगा। षड्खण्डागम के पाँच खण्ड टीका सहित 16 भागों में तथा छठा खण्ड सात भागों में प्रकाशित हो चुका है। कषाय पाहुड़ की टीका 16 भागों में प्रकाशित हो चुकी है। इन तीन ग्रन्थों के अतिरिक्त वीरसेन स्वामी की और किसी रचना का परिज्ञान नहीं। सम्भव यही है कि इनकी कोई अन्य रचना नहीं होगी। क्योंकि पिछली दो टीकायें 92 हजार श्लोक परिमित हैं और एक मनुष्य के द्वारा इतनी रचना का होना कदापि और कथमपि न्यूनतम नहीं है।123 गुरु परम्परा जिनसेन की गुरु परम्परा को निम्नांकित तालिका से स्पष्टतः समझा जा सकता है। (अगले पृष्ठ पर) स्थान जिनसेन व गुणभद्र कहाँ के रहने वाले थे, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता; क्योंकि इसका उल्लेख उनके किसी भी प्रशस्ति में उपलब्ध नहीं है। किन्तु इनसे सम्बद्ध तथा इनके निजी ग्रन्थों में बंकापुर (धारवाड़, कर्नाटक). वाटग्राम (बड़ौदा, गुजरात) तथा चित्रकूट का उल्लेख आता है। जिससे यह अनुमान किया जा सकता है कि ये सम्भवतः कर्नाटक प्रान्त के रहने वाले थे। 24 बंकापुर उस समय बनवास देश की राजधानी थी जो वर्तमान में कर्नाटक के धारवाड़ जिले में अब स्थित है। नाथूराम प्रेमी के अनुसार
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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