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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
वीरसेन और जिनसेन का विहार क्षेत्र कर्नाटक प्रान्त ही रहा होगा और इसी क्षेत्र में आदिपुराण की रचना हुई होगी। 125
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दशरथगुरु
गुणभद्र
लोकसेन
समय
वीरसेन
आचार्य चन्द्रसेन
I आर्यनन्दी
जिनसेन विनयसेन श्रीपाल
कुमारसेन
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काष्ठो संघप्रवर्तक
जयसेन
पदसेन
देवसेन
हरिवंश पुराण की रचना के समय आदिपुराण के कर्त्ता जिनसेन द्वितीय विद्यमान थे और उन्होंने तब तक पार्श्व जिनेन्द्र स्तुति तथा वर्धमान पुराण नामक दो ग्रन्थों की रचना भी कर ली थी। 26 किन्तु जिनसेन की जयधवला टीका के अन्तिम भाग तथा महापुराण जैसी सुविस्तृत और महत्त्वपूर्ण कृतियों का हरिवंश पुराण के कर्त्ता जिनसेन प्रथम ने कोई उल्लेख नहीं किया है। जिससे यह तथ्य भी आभासित होता है कि महापुराण जिनसेन द्वितीय की परवर्ती काल की रचना थी । हरिवंशपुराण में वर्णित प्रारम्भिक रचनाओं के समय आदिपुराण के कर्त्ता की आयु कम से कम 25-30 वर्ष अवश्य रही होगी । हरिवंशपुराण के अन्त में दी गई प्रशस्ति में उसका रचनाकाल शक संवत् 705 (783 ई.) बताया गया है। हरिवंशपुराण की रचना आरम्भ करते समय आदिपुराण के कर्त्ता जिनसेन द्वितीय की आयु यदि 25 वर्ष रही होगी । तो उनका जन्म शकसंवत् 675 (753 ई.) के आसपास ही हुआ होगा।
जयधवला टीका की प्रशस्ति से यह ज्ञात होता है कि जिनसेन द्वितीय ने अपने गुरु की वीरसेनीया टीका शकसंवत् 759 (837 ई.) पूर्ण की थी। इससे सिद्ध होता है कि जिनसेन द्वितीय 837 ई. तक विद्यमान थे। जिनसेन