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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि
सम्मानित होने से उनका जन्म स्थान का अनुमान महाराष्ट्र तथा कर्नाटक के सीमावर्ती प्रदेश में किया जा सकता है। 99
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संसार के अन्य ग्रन्थों में हमें अन्य विशेषताएँ भले ही मिल जायें परन्तु उनके द्वारा रचित आदिपुराण में जिस धार्मिकता, उदात्त एवं दिव्य भावनाओं और उच्चनैतिक आदर्शों का विशद वर्णन मिलता है; उसका अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। आदिपुराण प्राचीन जैन सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है। संसार के किसी भी ग्रन्थ में काव्य और नैतिकता का इतना सुन्दर सम्मिश्रण नहीं हुआ है; जितना आदिपुराण में हुआ है।
जिनसेन के महनीय व्यक्तित्व को देखते हुए उनके प्रति सम्मानार्थ भगवन् जिनसेन भी कहा जाता है। उनके दादा गुरु आर्यनन्दि थे। जिनसेन के सतीर्थ दशरथ मुनि थे। जिनसेन और दशरथ मुनि के शिष्य गुणभद्र हुए। ये भी बहुत बड़े ग्रन्थ कर्त्ता हुए | 100
आदिपुराण की उत्थानिका में जिनसेन ने अपने पूर्ववर्ती प्रसिद्ध कवियों और विद्वानों का उनके वैशिष्ट्य के साथ स्मरण किया है। (1) जिनसेन, (2) समन्त भद्र, (3) श्रीदत्त, (4) प्रभाचन्द्र, (5) शिवकोटि, (6) जराचार्य, (7) काणभिक्षु, (8) देव, देवनन्दि, (9) भट्टाकलंक, ( 10 ) श्रीपाल, (11) पात्रकेसरी, ( 12 ) वादिसिंह, (13) वीरसेन, ( 14 ) जयसेन, (15) कविपरमेश्वर | 101
इस ग्रन्थ से इनके रचनाकाल का पता नहीं चलता फिर भी अन्य प्रमाणों ज्ञात होता है कि ये हरिवंश पुराणकार द्वितीय जिनसेन के ग्रन्थ- कर्तृत्वकल (शक सं. 705 सन् 783) में जीवित थे। उनकी ख्याति पार्श्वाभ्युदय रचयिता के रूप में फैली थी। उसके बाद वृद्धावस्था काल में ही आदिपुराण की रचना प्रारम्भ की थी। जिसे समाप्त करने के पूर्व ही वे दिवंगत हो गये थे। स्व. पं. नत्थूराम प्रेमी ने अनुमान किया है कि उनका जीवन 80 वर्ष के लगभग रहा होगा और वं शक. सं. 685 ( सन् 763) में जन्मे होंगे। जिनसेन द्वितीय के काल (शक सं. 705) में वे 20-25 वर्ष के लगभग रहे होंगें। जयधवला की समाप्ति काल में 74 वर्ष और आदिपुराण के लगभग 10 हजार श्लोकों की रचना के समय 80 या उससे कुछ अधिक आयु के रहे होंगे। 102
जिनसेन स्वामी
जिनसेन अपने गुरु के ही समान महान् विद्वान् और उनके सच्चे