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________________ आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि 1. षड्द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल यह छह द्रव्य कहे जाते हैं। 2. क्षेत्र - ऊर्ध्व, मध्य और पाताल यह तीन लोक क्षेत्र कहे जाते हैं। 3. तीर्थ तीर्थंकर देव के गुणों का चित्रण ही तीर्थ है। 4. काल भूत, वर्तमान, भविष्यत यह तीन काल लोक में प्रसिद्ध हैं। क्षायोपशमिक और क्षायिक ये दो जीव के भाव हैं। 5. भाव 6. महाफल तत्त्वों का ज्ञान होना ही महाफल है। वर्णनीय कथावस्तु को प्रकृत कहते हैं। 2 7. प्रकृत उपर्युक्त कहे हुए सात अंग जिस कथा में पाये जाये अर्थात् जिस कथा में वर्णित हो उसे सत्कथा कहते हैं। इन सातों का आदिपुराण में यथास्थान वर्णन किया गया है। १३ - - - - पुराण में वर्णित विषय और उनका लक्षण पुराण में लोक, देश, नगर, राज्य, तीर्थ, दान, तप, गति और फल । इन आठ विषयों का वर्णन अवश्य होता है294 - 1. लोकाख्यान लोक की व्युत्पत्ति बतलाना, प्रत्येक दिशा और उसके अन्तरालों की लम्बाई, चौड़ाई आदि बतलाना इनके सिवाय और भी अनेक बातों का विस्तार के साथ वर्णन करना लोकाख्यान कहलाता है। -- 25 2. देशाख्यान लोक के किसी एक भाग के देश, पहाड़, द्वीप तथा समुद्र आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन करने को महापुरुषों ने देशाख्यान कहा है। 5 - - 3. पुराख्यान भारतवर्ष आदि क्षेत्रों में राजधानी का वर्णन करना, पुराण जानने वाले आचार्यों के मत में पुराख्यान अर्थात् नगर वर्णन कहलाता है। 4. राजाख्यान इस देश का यह भाग अमुक राजा के आधीन है अथवा यह नगर अमुक राजा का है इत्यादि वर्णन करना राजाख्यान कहा गया है। " - 5. तीर्थाख्यान जो इस अपार संसार समुन्द्र से पार करे उसे तीर्थ कहते हैं। ऐसा तीर्थं जिनेन्द्र भगवान का चरित्र ही हो सकता है अतः उसके कथन को तीर्थाख्यान कहते हैं। 1
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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