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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि विवेच्य विषय
आदिपुराण के विषय वस्तु की व्यापकता को दृष्टि में रखते हुए पन्नालाल जैन का कथन है कि जो अन्यत्र ग्रन्थों में प्रतिपादित है वह इसमें भी प्रतिपादित है और जो इसमें प्रतिपादित नहीं है वह अन्यत्र कहीं भी प्रतिपादित नहीं है।
महापुराण का सम्पूर्ण आख्यान महाराज श्रेणिक के प्रश्नों के उत्तर के रूप में गौतम गणधर के मुखारविन्द से प्रस्तुत हुआ है।
आदिपुराण के प्रथम दो पर्व प्रस्तावना के रूप में हैं जिनमें कवि, महाकवि, काव्य, महाकाव्य तथा महापुराण की परिभाषा देते हुए आदिपुराण की ऐतिहासिकता बतलायी है। तीसरे पर्व में उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काल, भोगभूमि तथा कुलकरों आदि की उत्पत्ति एवं नामावली का वर्णन हुआ है। चौथे पर्व में अधोलोक, तिर्यक्लोक और ऊर्ध्वलोक के भेद से लोक के तीन भेदों का वर्णन किया गया है। पाँचवें से ग्यारहवें पर्यों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के दस पूर्वभवों का विस्तार के साथ वर्णन है।87
___आदिपुराण के अनुसार ऋषभदेव का जीव पहले भव में जयवर्मा, दूसरे में महाबल, तीसरे में ललितांगदेव, चौथे में राजा वज्रजंघ, पाँचवें में भोग-भूमि का आर्य, छठे में श्रीधर देव, सातवें में सुविधि, आठवें में अच्युतेन्द्र, नौवें में वज्रानाभि तथा दसवें भव में सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ और वहाँ से च्युत होकर सब इन्द्रों द्वारा वन्दनीय ऋषभदेव हुआ।88
श्वेताम्बर परम्परा में भगवान ऋषभदेव के तेरह पूर्व भवों का उल्लेख कल्पसूत्र में किया गया है। ऋषभदेव का जीव पहले भव में धन्ना सार्थवाह, दूसरे भव में उत्तर कुरु में मनुष्य, तीसरे भव में सौधर्म देवलोक में देव, चौथे भव में महाबल, पाँचवें भव में ललिताङ्ग देव, छठे भव में वज्रजंघ, सातवें में युगलिक, आठवें में सौधर्म कल्प में देव, नौवें में जीवानन्द वैद्य, दसवें भव में अच्युत देवलोक में, ग्यारहवें भव में वज्रनाभ, बारहवे भव में सर्वार्थसिद्ध में, तेरहवें भव में ऋषभदेव तीर्थंकर बनें।89
बारहवें से पन्द्रहवें पर्यों में ऋषभदेव के च्यवन, जन्म, बाल्यावस्था, यौवन, विवाह तथा भरत चक्रवर्ती के जन्म का सुन्दर व विशद् वर्णन हुआ है। सोलहवें पर्व में ऋषभदेव की रानियों से भरत बाहुबलि आदि अन्य पुत्रों एवं पुत्रियों अर्थात् सन्तानोत्पत्ति प्रज्ञा के लिए, असि, मषि, कृषि, वाणिज्य, सेवा और शिल्प इन छह आजीविकाओं का प्रतिपादन तथा क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र