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________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण पुराण नाम रचयिता रचना संवत 1497 1659 168886 14. महापुराण (अपभ्रंश) महाकवि पुष्पदन्त 15. पुराणसार श्री चन्द्र 16. पाण्डवपुराण भ. शुभचन्द्र 1608 पाण्डवपुराण (अपभ्रंश) भ. यशः कीर्ति पाण्डव पुराण भ. श्री भूषण 1657 पाण्डव पुराण भ. वादिचन्द्र 1658 17. श्रीपुराण भ. गुणभद्र 18. वागर्थसंग्रह पुराण कवि परमेष्ठी आ. जिनसेन के महापुराण से प्राग्वती। 19. चामुण्ड पुराण (क) चामुण्डराय शक सं. 980 20. जयकुमार पुराण ब्र. कामराज 1555 21. कर्णामृत पुराण केशवसेन आदिपुराण आचार्य जिनसेन और गुणभद्र की उस विशाल रचना का नाम है जो उनकी 47 पर्वो तक की रचना है। आदिपुराण में 11429 श्लोक हैं। जिनसेन ने 63 श्लाका पुरुषों के चरितों को बृहत्प्रमाण में लिखने की प्रतिज्ञा की थी; पर अत्यन्त वृद्ध होने के कारण वे केवल आदिपुराण के बयालीस पर्व और तेतालीसवें पर्व के तीन पद्य अर्थात 10380 श्लोक प्रमाण रचकर स्वर्गवासी हो गये। इसके बाद उनके सुयोग्य शिष्य गुणभद्र ने शेष कृति को संक्षेप रूप में पूर्ण किया। जिनसेन ने अपनी कृति को पुराण और महाकाव्य दोनों नामों से पुकारा है। वास्तव में यह न तो ब्राह्मणों के विष्णु पुराण आदि जैसा पुराण है और न शिशुपालवधादि के समान महाकाव्य के बाह्य लक्षणों से सम्पन्न एक पौराणिक महाकाव्य है। आदिपुराण में मुख्य रूप से प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के दश पूर्वभवों और वर्तमान भव का तथा भरत चक्रवर्ती के चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। उत्तरपुराण में दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर, 11 चक्रवर्ती, 9 बलभद्र, 9 नारायण और नौ प्रतिनारायण तथा उनके काल में होने वाले अन्य विशिष्ट पुरुषों के चरित वर्णित हैं।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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