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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि
ग्रन्थकार आदिपुराण ग्रन्थ रचने से पूर्व सर्वप्रथम नाभिराजा के पुत्र वृषभ चिन्ह से सहित ऋषभदेव प्रभु को बार-बार नमस्कार करके चित्त को एकाग्र करते हुए उनकी स्तुति करते हैं। फिर दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर महावीर स्वामी तक तेईस तीर्थंकारों को भी नमस्कार करते है। इसके पश्चात् केवल ज्ञानी गणधर प्रभु की स्तुति करते हैं। वे अपने देव, गुरु शास्त्र के स्तवन द्वारा मंगलमय कार्य का शुभ आरम्भ करते है। वे त्रेसठ श्लाका पुरुषों का जीवन चरित्र वर्णित करने के लिए पुराण लिखूगा। ऐसी भावना करते है।
आदिपुराण में पुराण का लक्षण
जो ग्रन्थ अति प्राचीनकाल से हमें देखने को मिल रहा हो और समाज में अत्यन्त प्रतिष्ठा को प्राप्त करें, उसे पुराण कहते हैं। आदिपुराण में महापुराण की परिभाषा ___ जिस पुराण में महापुरुषों के जीवन का विस्तृत वर्णन हो तीर्थंकर आदि महापुरुषों ने जिनका उपदेश दिया हो। जिसके पढ़ने से महाकल्याण की प्राप्ति होती है। वह महापुराण कहलाता है। प्राचीन आचार्यों, कवियों महर्षियों द्वारा इसका प्रचार-प्रसार हुआ है। इसलिए इसकी प्राचीनता पुराणता प्रसिद्ध ही है। इसकी महत्ता इसके माहात्म्य से ही जानी जा सकती है। इसलिए इसे महापुराण कहते हैं।
आदिपुराण तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों आदि महापुरुषों से सम्बन्धित होने तथा महान् फल-स्वर्ग मोक्षादि कल्याणों का कारण होने से महर्षि लोग इसे महापुराण कहते हैं।80
आदिपुराण महाकाव्य का लक्षण
जो ग्रन्थ पुरातनकालीन इतिहास से सम्बन्ध रखने वाला हो, जिसमें तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि महापुरुषों के चरित्र का वर्णन किया गया हो तथा पुरुषार्थ त्रय (धर्म, अर्थ, काम) के फल को दिखाने वाला हो उसे महाकाव्य कहते हैं।।
चौबीस तीर्थंकरों का संकेत
कुछ आचार्य ऐसा भी कहते हैं कि तीर्थंकरों के पुराणों में चक्रवर्ती आदि के पुराणों का भी संग्रह हो जाता है। इसलिए पुराण चौबीस ही समझने चाहिए। उनके नाम इस प्रकार हैं