SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण यशोविजय यशोविजय का समय 17वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध है। इन्होंने संस्कृत, प्राकृत, गुजराती तथा हिन्दी में खण्डात्मक, प्रतिपादनात्मक तथा समन्वयात्मक अनेक ग्रन्थों की रचना की है। इसका "जैन तर्कभाषा'' सरल, संक्षिप्त तथा अत्यन्त उपादेय ग्रन्थ है।38 इस प्रकार आगमों में निहित तत्त्व-चिन्तन का प्रवाह आगे बढ़ता गया। जब इस तत्त्व को पढ़ते-पढ़ाते, सुनते-सुनाते दार्शनिकों की भाषा गूढ़ से गूढ़तम अर्थात् कठिन सी प्रतीत होने लगी तब कवियों अथवा पुराणकारों ने समाज को जैन-आगमों का रहस्य समझाने के लिए एक पृथक् सारणी अपनाई, जिसके द्वारा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को आगमों का मन्तव्य सरलता से समझ में आ सके। इस परम्परा में जैन-पुराणों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन पुराणों में आदिपुराण एक हैं जो "महापुराण' नाम से विख्यात है। पुराण परिचय पुराण शब्द की व्युत्पत्ति तथा अर्थ ___पुरा अव्ययपूर्वक “णी'' प्रापणेधातु से ड प्रत्यय करने के बाद टिलोप और णत्व कार्य करने पर पुराण शब्द सिद्ध होता है। अर्थात् पुरा - नी - ड ये तीनों अवयव मिलकर व्याकरण शास्त्र के नियमानुसार पुराण शब्द के रूप में परिणत हो जाते हैं। अथवा पुरा भवः इस विग्रह में पूरा अव्यय से - सायंचिरं प्रावे प्रगेऽव्ययेभ्यष्ट् युट्युलौ तुट् च39 इस पाणिनीय सूत्र के टयु प्रत्यय होने के बाद टकार की इत्संज्ञा और लोप करने के बाद “युवोरनाको ''40 से अन् और "अट्कुत्वाङनुम्व्यवायेऽपि''4| से णत्व करके पुराण शब्द बनता है। तथा "पूर्वकालैकसर्वजरत्पुराणनवकेवला: समानाधिकरणेन''142 इस पाणिनि सूत्र में पुराण शब्द के निर्दिष्ट होने के कारण निपातन से तुट का अभाव हो जाता है और शास्त्र का विशेषण होने के कारण नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होता है अथवा "पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु" इस सूत्र निर्देश से निपातन करके पुराण शब्द बन जाता है। अथवा "अन्'' प्राणने धातु से अव् प्रत्यय करके "पुराण" शब्द बनता है। जिसका तात्पर्य है जो शास्त्र अपने उपदेशों द्वारा समाज को अनुप्राणित करता है उसे पुराण कहते हैं।' महर्षि यास्काचार्य ने अपने निरुक्त नामक ग्रन्थ में पुराण शब्द का निर्वचन इस प्रकार किया है। पुराणं कस्मात्? "पुरा नवं भवति''44 अर्थात्
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy