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________________ आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि 13 विद्यानन्द विद्यानन्द नवम शताब्दी के विद्वान हैं। इनका दूसरा नाम “पात्रकेसरी" प्रसिद्ध है। इन्होंने अष्टशती पर अष्ट सहस्री तथा तत्त्वार्थ सूत्र पर "श्लोकवार्तिक" लिखकर मीमांसा मूर्धन्य कुमारिल भट्ट की शैली का अनुकरण किया है।34 अवान्तरयुगीन परवर्ती दार्शनिक विद्वान तथा साहित्य देव सूरि ये 12वीं शताब्दी के विद्वान थे। इन्होंने "प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार" तथा इसकी टीका “स्याद्वादरत्नाकर" की रचना की है। ये ग्रन्थ जैन न्याय के महत्त्वपूर्ण प्रमाणभूत ग्रन्थ माने जाते हैं।35 हेमचन्द्र ये देवसूरि के समकालीन हैं। ये अपने समय के उद्भट विद्वान् तथा विख्यात जैनाचार्य माने जाते थे। ब्राह्मणों के द्वारा निर्मित काव्य, व्याकरण तथा अलंकार ग्रन्थों के स्थान पर इन्होंने स्वयं जैनियों के उपकारार्थ अनेक काव्यादिकों की रचना की। इसके अतिरिक्त इन्होंने जैन न्याय के विषय में "प्रमाणमीमांसा' नामक विद्वत्तापूर्ण तथा प्रमेयबहुल ग्रन्थ रत्न का भी निर्माण किया है। निखिल-शास्त्र निपुणता तथा बहुज्ञता के कारण इन्हें "कलिकालसर्वज्ञ" की उपाधि प्रदान की गई थी।36 मल्लिषेणसूरि मल्लिषेण सूरि की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना "स्याद्वादमंजरी" है जो हेमचन्द्र की “अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशका" की विस्तृत तथा विद्वत्तापूर्ण टीका है। इस ग्रन्थ की विशेषता यह है इसमें ब्राह्मण, बौद्ध तथा चार्वाक दर्शनों की मार्मिक समालोचना तथा जैन सिद्धान्तों का प्रमाणपुर:सर विवेचन है। गुणरत्न गुणरत्न ने हरिभद्र के षड्दर्शन-समुच्चय की बड़ी सुन्दर तथा विस्तृत व्याख्या की है। जिसमें सब दर्शनों के सिद्धान्तों की मार्मिक विवेचना की गई है तथा उनके विषय में अनेक विशिष्ट साम्प्रदायिक बातों का उल्लेख किया है।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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