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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
4. नियमसार - इस में मोक्ष मार्ग के नियम से (आवश्यक) करणीय
ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना पर बल दिया गया है।28 5. अष्ट पाहुड़ - इस ग्रन्थ में दसण (दर्शन) पाहुड़, चारित्र पाहुड़,
सुत्त पाहुड़, बोध पाहुड़, भाव पाहुड़, मोक्ष पाहुड़, लिंग पाहुड़, शील पाहुड़। इन अष्ट पाहुड़ों का विस्तृत वर्णन किया गया है।29 इसके अतिरिक्त दस भक्ति, द्वादशानुप्रेक्षा पर भी चर्चा की गई है।
सिद्धसेन दिवाकर
सिद्धसेन दिवाकर पंचम शताब्दी के सबसे बड़े विद्वान् थे। उज्जैन के विक्रमादित्य के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता थी। इनके गुरु का नाम "वृद्धवादी" था। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं - "न्यायावतार" - (सिद्धर्षि ने 10वें शतक में टीका लिखी) सन्मति तर्क - विशद व्याख्याकार अभयदेवसूरि, तत्त्वार्थटीका, कल्याण मन्दिर स्त्रोत तथा अनेक द्वात्रिंशिकायें। न्यायवतार की रचना कर इन्होंने जैन न्याय को जन्म दिया है। सन्मतितर्क नितान्त प्रमेय-बहुल ग्रन्थ है।30
समन्त भद्र
समन्तभद्र सप्तमाताब्दी में अपनी विद्वत्ता तथा प्रगाढ़ पाण्डित्य के लिए विशेष विख्यात है। ये दिगम्बर सम्प्रदाय के आचार्य थे और दक्षिण में रहने वाले थे। इन्होंने "आप्तमीमांसा' की रचना कर दार्शनिक जगत में विमल-कीर्ति प्राप्त की है।
हरिभद्र
जैनधर्म तथा दर्शन पर अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के रचयिता होने के साथ साथ इन्होंने लोकप्रिय षड्दर्शन-समुच्चय की भी रचना की है। 2
भट्ट अकलङ्क
भट्ट अकलङ्क दिगम्बर परम्परा के महान् विद्वान थे। ये अष्टम शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्पन्न हुए थे। इन्होंने तत्त्वार्थसूत्र पर महत्त्वपूर्ण "राजवार्तिक" तथा आप्तमीमांसा के व्याख्यारूप में "अष्टशती" की रचना की है। इसके अतिरिक्त इन्होंने तीन छोटे-छोटे दार्शनिक ग्रन्थों की भी रचना की है। उनके नाम लघीयस्त्रय, न्याय-विनिश्चय तथा प्रमाण संग्रह है। इन सब ग्रन्थों का विषय जैन न्याय है।33