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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि अभयनन्दी आदि विद्वानों ने भी तत्त्वार्थसूत्र पर अपनी-अपनी टीकाएँ लिखी हैं। बीसवीं शताब्दी में पं. सुखलाल संधवी आदि विद्वानों ने हिन्दी और गुजराती आदि भाषाओं में "तत्त्वार्थ सूत्र" पर सुन्दर विवेचन किया है।22
आचार्य कुन्दकुन्द
आचार्य कुन्दकुन्द का दिगम्बर परम्परा में गरिमामय स्थान है। अध्यात्म दृष्टियों को विशेष उजागर करने का श्रेय इन्हें प्राप्त है। ये द्रविड़देश के विख्यात अग्रगण्य एवं सम्माननीय मुनिवर तथा ग्रन्थकार हैं। इनके काल के विषय में बड़ा मतभेद है, पर मान्य इतिहासवेत्ता इन्हें विक्रम की प्रथम शताब्दी में विद्यमान बतलाते हैं। इस प्रकार ये उमास्वाति के समसामयिक प्रतीत होते हैं। इनके ग्रन्थ इस सम्प्रदाय के सिद्धान्तों के लिए विश्वकोष का काम करते हैं। इनका द्राविडी नाम "कोण्डकुण्ड" था। जिसका संस्कृत रूपान्तर "कुन्दकुन्द" के रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध हुआ।23
साहित्य
अध्यात्म की भूमिका पर रचित आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थरत्न महत्त्वपूर्ण हैं। जो इस प्रकार हैं समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार,24 अष्टपाहुड़, दस भक्ति अथवा भक्ति संग्रह एवं द्वादशानुप्रेक्षा। 1. समयसार - समयसार आर्यावृत्त में गुम्फित प्राकृत शौरसेनी भाषा
का सर्वोत्कृष्ट आगम माना गया है। इसके नौ अधिकार हैं - जीवाजीवाधिकार, कर्त्ताकर्माधिकार, पुण्य-पाप अधिकार, आश्रव अधिकार, संवर अधिकार, निर्जरा अधिकार, बन्ध अधिकार, मोक्ष
अधिकार. सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार। 2. प्रवचनसार - यह उत्तम अध्यात्म ग्रन्थ है। इसकी शैली सरल
और सुबोध है। इसमें आत्मा और ज्ञान सम्बन्धों की चर्चा है। द्रव्य, गुण, पर्याय आदि ज्ञेय पदार्थों का विस्तृत वर्णन है तथा सप्तभङ्गी का सम्यक् प्रतिपादन है और चरित्र के स्वरूप का विवेचन बताया है। इस ग्रन्थ में तीर्थंकर के प्रवचनों के सार संग्रहीत है। अत: इस
ग्रन्थ का नाम प्रवचनसार पड़ा।26 3. पंचास्तिकाय - इस ग्रन्थ में पाँच अस्तिकाय का विवेचन होने के
कारण ग्रन्थ का नाम पंचास्तिकाय है। धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और जीव इन पाँचों अस्तिकाओं के साथ काल द्रव्य की व्याख्या भी इस ग्रन्थ में की गई हैं।