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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि
परिकर्म
चन्द्रप्रज्ञप्ति
सूर्यप्रज्ञप्ति
जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति
द्वीप - सागर - प्रज्ञप्ति
व्याख्या - प्रज्ञप्ति
दृष्टिवाद
सूत्र प्रथमानुयोग
पूर्वगत
चूलिका
जलगता
उत्पाद अग्रायनीय स्थलगता
वीर्यानुप्रवाद मायागता
अस्तिनास्तिप्रवाद आकाशगता
ज्ञानप्रवाद
रूपगता
सत्यप्रवाद
आत्मप्रवाद
कर्मप्रवाद
प्रत्याख्यान
विद्यानुवाद
कल्याण
प्राणावाय
क्रियाविशाल
लोकबिन्दुसार
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उपर्युक्त सम्पूर्ण आगमों में निहित तत्त्व चिन्तन को विस्तार देने के लिए दार्शनिक धारा को प्रवाह का उद्गम, उमास्वाति के " तत्त्वार्थसूत्र" ग्रन्थ के रूप में माना जाता है। यह बात " तत्त्वार्थसूत्र - जैनागम - समन्वय" ग्रन्थ से भली- भान्ति विदित है।
जैन दार्शनिक एवं उनका साहित्य
आचार्य उमास्वाति और तत्त्वार्थ सूत्र
जैन दर्शन में उमास्वाति का तत्त्वार्थ सूत्र बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें जैन दर्शन सम्बन्धी सभी विचारों को सूत्र रूप में प्रस्तुत किया गया है। वाचक उमास्वाति का प्राचीन से प्राचीन समय विक्रम की पहली शताब्दी और अर्वाचीन से अर्वाचीन समय तीसरी चौथी शताब्दी है। 18 इन तीन - चार सौ वर्ष के बीच में उनका समय माना जाता है।