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________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण कषाय पाहुड, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार आदि ग्रन्थों के रूप में उपलब्ध होता है। दिगम्बर आचार्यों द्वारा मान्य तत्त्वार्थसूत्र की वृत्ति में आगमों को दो भागों में विभक्त किया गया है-(1) अंग प्रविष्ट, (2) अंग बाह्य। आगम15 अंग प्रविष्ट आचार अंग बाह्य सामायिक चतुविंशतिस्तव सूत्रकृत स्थान वन्दना समवाय व्याख्याप्रज्ञप्ति ज्ञाताधर्म कथा प्रतिक्रमण वैनयिक कृतिकर्म दशवैकालिक उत्तराध्ययन उपासकदशा कल्पव्यवहार अन्तकृतदशा अनुत्तरोपपातिक प्रश्नव्याकरण विपाकसूत्र दृष्टिवाद6 कल्पाकल्प महाकल्प महापुण्डरीक निषिद्धिका7
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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