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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि
11 अङ्ग
12 उपाङ्ग 1. आचारङ्ग
1. औपपातिक 2. सूत्रकृताङ्ग
2. राजप्रश्नीय 3. स्थानाङ्ग
3. जीवाभिगम 4. समवायाङ्ग
4. प्रज्ञापना 5. भगवती
5. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 6. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग
6. सूर्य प्रज्ञप्ति 7. उपासक (दृशाङ्ग) 7. चन्द्रप्रज्ञप्ति 8. अन्तकृतदृशाङ्ग
8. निरयावलिका 9. अनुत्तरोपपातिकदशा 9. कल्पवतंसिका 10. प्रश्न व्याकरण
10. पुष्पिका 11. विपाक सूत्र
11. पुष्पचूलिका 12. दृष्टिवादाद
___12. वृष्णि दशा'3 ___ (जो आज अनुपलब्ध है) वर्तमान देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के समय का संकलित है। 4. मूल सूत्र
4. छेद सूत्र 1. नन्दी
1. बृहत्कल्प 2. अनुयोगद्वार
2. व्यवहार 3. दशवैकालिक
3. निशीथ 4. उत्तराध्ययन
4. दशाश्रुतस्कन्ध
इस प्रकार अङ्ग, उपाङ्ग, मूल और छेद सूत्रों के संकलन से यह संख्या 31 होती है, उसमें आवश्यक सूत्र के संयोग से कुल 32 आगम हो जाते हैं। ये 32 सूत्र अर्थरूप से तीर्थंकर प्रणीत हैं और गणधर द्वारा प्रतिपादित हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में आगमों की संख्या पैन्तालीस मानी जाती है और दिगम्बर परम्परा में आगमों की संख्या चौरासी मानी गई है किन्तु वे शास्त्र समग्र रूप से उपलब्ध नहीं। दिगम्बर परम्परा की मान्यता है कि सभी आगम विच्छिन्न हो गये है। आज उपलब्ध उक्त आगमों को कोई मान्यता ही नहीं है। उत्तरकालीन आचार्यों द्वारा गुरु परम्परा से आया आगम ज्ञान षड्खण्डागम,