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________________ आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि चरितार्थ नहीं होता, भगवान महावीर के नौ गण थे, अत: नौ ही वाचनाएँ हुई परन्तु उनके गणधरों की संख्या ग्यारह थी। आठवें और नौवें गणधर अकम्पित और अचलभ्राता इन दोनों को एक वाचना उपलब्ध हुई और दसवें तथा ग्यारहवें मेतार्य और प्रभास नामक गणधरों को भी एक ही वाचना मिली। वतर्मान द्वादशाङ्गी का निर्माण सुधर्मा स्वामी जी ने किया था। जैसा कि कल्प-सूत्र से ज्ञात होता है। शेष गणधरों की वाचनाएँ विच्छिन्न हो गई है। दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ जयधवला में भी सुधर्मा-स्वामी द्वारा जम्बू आदि शिष्यों को वाचना देने का उल्लेख प्राप्त होता है।' इन चौदह पूर्वो के ज्ञान को श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा दोनों मानती हैं। दिगम्बरो में आगम रूपसे माने जाने वाले षड्खडागम और कषायप्राभृत भी पूर्वो से उद्धृत कहे जाते है। 3. प्रमुख वाचनाएँ वर्तमान में आगम के जो संस्करण उपलब्ध हैं वे प्रस्तुत रूप में देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के समय के हैं। उससे पूर्व आगम साहित्य लिपिबद्ध नहीं किया गया था। भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् समय प्रभाव से प्राकृतिक प्रकोप के कारण श्रुतज्ञान (आगम) धीरे-धीरे विच्छिन्न होता जा रहा था। आचार्यों ने श्रुत परम्परा से आये ज्ञान को पुनः संग्रह करने का विचार किया है। इस सम्बन्ध में जो प्रमुख वाचनाएँ सम्पन्न हुई उनका वर्णन इस प्रकार हैं पाटलिपुत्र वाचना वीर निर्वाण सम्वत् 160 के आसपास पाटलिपुत्र में 12 वर्षों का भयंकर दुष्काल पड़ा। दुर्भिक्षा के कारण श्रमण सुदूर प्रदेशों में चले गए। श्रमणसंघ छिन्न-भिन्न-सा हो गया। बहुत से बहुश्रुत मुनि अनशन कर देह त्याग गये। आगम ज्ञान की शृंखला टूट-सी गई। जब दुर्भिक्ष समाप्त हुआ, तब संघ की बैठक हुई। मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में आर्य स्थूलिभद्र के नेतृत्व में एक परिषद् बैठी, श्रमणों ने एक-दूसरे से पूछ-पूछकर ग्यारह अंगों का संकलन सर्वसम्मति से किया। यह वाचना पाटलिपुत्र वाचना के नाम से पुकारी जाती है।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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