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आदिपुराण में दार्शनिक पृष्ठभूमि लगभग माना जाता है। श्रुत के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख करते हुएआप्त-वचन, आगम, उपदेश, ऐतिह्य, आम्नाय, प्रवचन और जिनवचन -- ये उन्होंने बताया है-शब्द श्रुत के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले बताए हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में भी लोकोत्तर आगमों में समस्त श्रुत-साहित्य को स्थान दिया गया है। अत: “आगम" शब्द की प्राचीनता तो निर्बाध है क्योंकि जो परम्परा से चले आ रहे हैं- “आगच्छतीति परम्परया आगमः" वे आगम हैं।
गणि-पिटक
__ श्रुत-समूह के लिये गणि-पिटक शब्द का भी प्रयोग होता है। "पिटक" शब्द का सामान्य अर्थ है पिटारा अर्थात् भंडार। श्रुत साहित्य गणनायक आचार्यों के लिये ज्ञान का भंडार था। - वह उनका सर्वस्व था। उसी को वे सर्वदा अपने शिष्यों-प्रशिष्यों को बाँटा करते थे। अतः श्रुत-साहित्य के लिये "गणि-पिटक" शब्द भी प्रचलित हो गया।
___शास्त्र के लिये सूत्र शब्द भी प्रयुक्त होता है। सूत्र शब्द की अनेक निरुक्तियाँ की गई हैं जैसे कि “सूचयतीति सूत्रम्" - जो अर्थ को सूचित करता है, उसे सूत्र कहते हैं। “सीव्यतीति सूत्रम्" जो अर्थ को शब्दों के साथ गूंथ देता है वह सूत्र है! - 'सुवतीति सूत्रम्' जो ज्ञानधारा को प्रवाहित करता है वह सूत्र है। "अनुसरतीति सूत्रम्" - जो केवली-भाषित अर्थ का अनुसरण करता है और जिसका अनुसरण अन्य मुमुक्षु करते हैं उसे सूत्र कहा जाता है। वस्तुत: थोड़े शब्दों में अधिक अर्थ प्रकट करने के कारण आगम सूत्र कहलाते हैं।
भगवान महावीर से पहले आगम साहित्य का विभाजन 14 पूर्वो के रूप में होता था, उनके पश्चात् यह विभाजन अंगप्रविष्ट तथा अंग बाह्य के रूप में होने लगा। पूर्वो का जो ज्ञान अवशिष्ट था, उसे 12वें अंग दृष्टिवाद में सम्मिलित कर लिया गया।
1. पूर्वो का वर्णन
अंग सूत्रों की रचना करने से पहले गणधरों को जो ज्ञान होता है वह पूर्वगत ज्ञान कहलाता है। जब तीर्थंकर भगवान देशना -प्रवचन कहते हैं तब वह ज्ञान गंगा तीर्थंकर के मुख से प्रवाहित होती है तो उसे गणधर पहले अपने