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________________ जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण विश्व में अनेक धर्म सम्प्रदाय हैं। प्रत्येक का अपना-अपना साहित्य है। विश्व के धर्म सम्प्रदायों में भारतीय धर्मों का और भारतीय धर्मों में जैन धर्म का विशिष्ट स्थान है। जैन धर्म एक होने पर भी काल प्रवाह के कारण गंगा नदी के समान अनेक भागों में बँट गया है। इन सम्प्रदायों में मतभेद होने पर भी समानता बहुत है- श्वेताम्बर और दिगम्बर मूल में दो धाराएँ हैं। दोनों का अपना-अपना साहित्य है। श्वेताम्बर जैन साहित्य दो विभागों में विभक्त है-(1) आगम साहित्य, (2) आगमेत्तर साहित्य। तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट, गणधरों एवं पूर्वधर स्थविरों द्वारा रचित साहित्य को आगम और आचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों को आगमेत्तर साहित्य की संज्ञा दी गई है। दिगम्बर परम्परा आगमों को लुप्त मानती है। दिगम्बर साहित्य को अनुयोगों के अनुसार चार भागों में विभक्त किया गया है। उनके नाम इस प्रकार हैं-(1) प्रथमानुयोग, (2) करणानुयोग, (3) चरणानुयोग, (4) द्रव्यानुयोग। प्रथमानुयोग में महापुरुषों का जीवन-चरित है। करणानुयोग में लोकालोक विभक्ति काल, गणित आदि का वर्णन है। चरणानुयोग में आचार का निरूपण है और द्रव्यानुयोग में द्रव्य, गुण, पर्याय, तत्त्व आदि का विश्लेषण है।' प्रथमानुयोग में महापुराण और अन्य पुराण साहित्य आता है। महापुराण में आदिपुराण का स्थान सर्वतोत्कृष्ट माना गया है। आदिपुराण में जो भी विवेच्य है वह सब द्वादशाङ्गी का विषय है। आदिपुराण में द्वादशाङ्गी से बाहर कुछ भी नहीं है। इसलिए आदिपुराण में कहा गया है पुराणस्यास्य वक्तव्यं कृत्स्नं वाङ्मयमिष्यते। यतो नास्मादबहिर्भूतमस्ति वस्तु वचोऽपि वा॥ आ.पु. 2.115 आदिपुराण के दार्शनिक तत्त्वों पर एक विहंगम दृष्टि डालना प्रसंगानुकूल ही प्रतीत होता है। आगम __ जैन परम्परा में शास्त्रों के लिये " श्रुत" शब्द के समान आज “आगम" शब्द विशेष रूप से प्रचलित हो गया है। जबकि प्राचीनकाल में इनके लिये " श्रुत'' शब्द की ही विशेष महत्ता थी। इसीलिये श्रुत-केवली, श्रुत-स्थविर आदि शब्द प्रचलित हुए। “आगम" शब्द भी प्रयुक्त होता था, परन्तु वह विशेष प्रसिद्ध न था। आचार्य उमास्वाति काल विक्रम की पहली शताब्दी के
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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