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________________ आदिपुराण में ईश्वर सम्बन्धी विभिन्न धारणाये और रत्नत्रय विमर्श 333 103. आ.पु. 21.110 104. त.सू. (के.मु.) 1.6 (वि.) 105. भ.द. (बल. उपा.) पृ. 158 106. धवला 1.1.1.1, 3.4.10 137. कषाय पाहुड 1.13-14,8.210 गा. 118-259 108. तत्वार्धाधिगम भाष्य 1.35 109. नयचक्रश्रुत, पृ. 1, न.वृ. पृ. 526, सू. 6 110. स्याद्वाद मंजरी 28.307.15 111. नित्यप्रवृत्तशब्दत्वाद् द्रव्यार्थिकनयाश्रितम्। वीचीनां क्षणभङ्गित्वात् पर्यायनयगोचरम्।। -आ.पु. 28.89 112. त.सू. (सू.ला.सं.) 1.35-36 113. सप्तनय संग्रहः। -आ.पु. 25.222; नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दा नयः। -त.सू. 1.34 114. आद्य शब्दौ द्वित्रिभेदौ। -त.सू. 1.35 115. विशेषावश्यक भाष्य - 2.2682-83 116. त.सू. (के.मु.) 1.35 (वि.) 117. वही। 118. त.सू. (के.मु.) 1.35 (वि.) 119. वही। 120. वही। 121. वही। 122. त.सू. (के.मु.) 1.35 (वि.) 123. वही। 124. स्याद्वादः सकलादेशो नयो विकलसंकथा-लघीयस्त्रय 3.6.62; जै.द. (मो.ला.मे.) पृ.328 125. (क) अष्टसहस्री पृ. 296; (ख) पञ्चास्तिकाय टीका श्री अमृतचन्द। 126. जै. द स्व. और वि. पृ. 231 127. स्याकारः सत्यलाञ्छनः-लघीयस्त्रय, श्लो. 22 128. सोऽप्रयुक्तोऽपि सर्वत्र स्यात्कारोऽर्थात्प्रतीयते। - वही 129. जै. द. (न्या. वि श्री) पृ. 318 130. त.सू. (के.मु.) 1.35 (वि.)। 131. (क) सप्तभिः प्रकारैर्वचन-विन्यासः सप्तभंगी तिगीयते। -स्याद्वाद मंजरी का. 23 की टीका
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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