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________________ 332 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण 75. आ.पु. 2.45; 17.49; 21.104 76. त.सू. -(के.मु.) 1.9 (वि.) 77. जै.द.स्व. और वि. (दे.मु.) पृ. 353-354 78. नन्दी.सू. (आ.आ.रा.जी.) (ज्ञा.प्र.) पृ. 62 79. त.सू. -(के.मु.) 1.9 (वि.) 80. नन्दी.सू. (ज्ञा.प्र.) सू. 1 81. नमोऽवधिजुपे तुभ्यं नमो देशावधित्विषे। परमावधये तुभ्यं नमः सर्वावधिस्पृशे।। -आ.पु. 2.66; पुनरपरेज्वधेस्त्रयो भेदा देशावधिः परमावधिः सर्वावधिश्चेति। -रा.वा. 1.22.5 (वृ.स.) 82. जै.सि.को. (भा. 1), पृ. 195 83. आ.पु. 5.270 84. नन्दी सू. 6 85. त. सू. 1.21 86. नन्दी सू. आ.आ.रा. जी 6 (टी.) 87. आ.पु. 18.13 88. त.सू. -(के.मु.) 1.9 (वि.) 89. जै.द. स्व. और वि. (दे.मु.) पृ. 36 90. वही, पृ. 361-362 91. ति.प. 4.973; ध 1.1.1.115 92. नमोऽस्त्वृजुमते तुभ्यं नमस्ते विपुलात्मने। -आ.पु. 2.68; ऋजुविपुलमती मनःपर्यायः। -त.सू. 1.24 93. कर्म.ग्र. (भाग 1), पृ. 53 94. जै.द. स्व. और वि. (दे.मु.) पृ. 363 95. नन्दी सू. - (आ.आ.रा. जी) (ज्ञा.प्र.) पृ. 121 96. जै.द.स्व. और विश्ले. (दे.मु.) पृ. 364 97. त.सू. -(के.मु.) 1.9 (वि.) 98. वाचनापृच्छने सानुप्रेक्षणं परिवर्तनम्। सद्धर्मदेशनं चेति ज्ञातव्या ज्ञानभावनाः।। -आ.पु. 21.96 99. तत् प्रमाणे। -त.सू. 1.10 100. प्रत्यक्षश्च परोक्षश्च द्विधा ते ज्ञानपर्ययः। -आ.पु. 2.61 101. आधे परोक्षम्। -त.सू. 1.11 102. प्रत्यक्षमन्यत्। -त.सू. 1.12
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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