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________________ आदिपुराण में ईश्वर सम्बन्धी विभिन्न धारणाये और रत्नत्रय विमर्श 331 -आ.पु. 9.126 -आ.पु. 9.126 -आ.पु. 9.127; त.सू. 1.3 -आ.पु. 9.127 -आ.पु. 9.123 47. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 48. कुरुपबृहण धर्मे मलस्थाननिगृहनैः। 49. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 50. मार्गाच्चलति धर्मस्थे स्थितीकरणमाचर। 51. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 52. रलत्रितयवत्यार्यसङ्घ वात्सल्यमातनु। 53. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 54. विधेहि शासने जैने यथाशक्तिप्रभावनाम्। 55. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 56. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 57. तस्य प्रशमसंवेगावास्तिक्यं चानुकम्पनम्। गुणाः श्रद्धारुचिस्पर्शप्रत्ययाश्चेति पर्ययाः।। 58. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 59. वही। 60. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (विवेचन) 61. वही। 62. त.सू. -(के.मु.) 1.3 (वि.) 63. आ.पु. 9.131-144 64. संवेगप्रशमस्थैर्यमसंमूढत्वमस्मयः। अस्तिक्यमनुकम्पेति ज्ञेयाः सम्यक्त्वभावनाः। 65. ज्ञानं जीवादि भावानां याथात्म्यस्य प्रकाशकम्। अज्ञानध्वान्त संतान प्रक्षयानन्तरोद्भवम्। 66. जै.सि.को. (भा. 2), पृ. 255 67. पं.का. 107 68. रा.वा. 1.1-5; पं.सं. 6 69. तेषां जीवादिसप्तानां संशयादि विवर्जनात्। याथात्म्येन परिज्ञानं सम्यग्ज्ञानं समादिशेत्। 70. मतिश्रुतावधिमनः पर्यायकेवलानि ज्ञानम्। 71. त्रिज्ञानविमलालोकः कालान्ते प्रापमिन्द्रताम्। 72. उत्तरा.सू. 28.4; नन्दी.सू. 1.1 73. नन्दी सू. -(मतिज्ञान प्रकरण) गा. 80 74. मतिः स्मतिः संज्ञा चिन्ता ऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम। -आ.पु. 21.97 -आ.पु. 24.118 -आ.पु. 47.305 -आ.पु. 47.306 -त.सू. 1.9 -आ.पु. 7.24 -त.सू. 1.13
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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