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________________ आदिपुराण में ईश्वर सम्बन्धी विभिन्न धारणाये और रत्नत्रय विमर्श 319 2. देश ग्राही। 1. समग्रग्राही नैगम नय - यह सामान्य को ग्रहण करता है। उदाहरणार्थ सोने, पीतल, मिट्टी का भेद न करके सभी प्रकार के घड़ों को एक "घड़ा" शब्द से ग्रहण करना।।18 2. देशग्राही नैगमनय - यह देश अर्थात् अंश को ग्रहण करता है। जैसे यह पीतल का घड़ा है, मिट्टी का घड़ा है इत्यादि। समग्र रूप से नैगमनय सामान्य (द्रव्य) और विशेष (पर्याय) दोनों को ही ग्रहण करता है। अर्थात् पूरे द्रव्य को (पर्याय सहित) ग्रहण करता है किन्तु कथन शैली में द्रव्य और पर्याय का कथन एक ही साथ नहीं हो सकता। अतः जब यह द्रव्य को मुख्य करके और पदार्थ को गौण रख कर कथन करता है तो समग्रग्राही नैगम नय होता है और जब पर्याय की मुख्यता से (द्रव्य को गौण रखकर) कथन करता है तो देशग्राही नैगम नय कहलाता है। 19 (ख) संग्रह नय सामान्य से सब का ग्रहण करने वाला संग्रह नय है। यह समूह की अपेक्षा से विचार करता है। जैसे एक "बर्तन" शब्द से लोटा, थाली, गिलास आदि सभी का कथन कर लेना - संग्रह नय है।120 (ग) व्यवहार नय विशेष को ग्रहण करने वाला व्यवहार नय है। यह संग्रह नय के कथन में भेद प्रभेद करता है। जैसे - संग्रह नयानुसार बर्तन शब्द से लोटा, गिलास आदि सभी ग्रहण कर लिये जाते हैं, किन्तु व्यवहार नय "लोटा" को 'लोटा' कहता है और "गिलास" को "गिलास" तथा "थाली" को "थाली" आदि कहता है। लोक व्यवहार को सुचारु रूप से चलाने के लिए व्यवहार नय अधिक उपयोगी और अनुकूल हैं।121 (घ) ऋजुसूत्रनय वर्तमान को ग्रहण करने वाला है ऋजुसूत्र नय है। केवल वर्तमान की पर्याय को ही ग्रहण करता है। भूत, भविष्य की पर्यायों को गौण रखता है।122 जैसे -- इस समय मैं सुख पर्याय को भोगता हूँ।
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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