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________________ 320 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण (ङ) शब्द नय व्याकरण सम्बन्धी लिंग, वचन, कालादि के दोषों को दूर करके वस्तु का कथन करता है। वह शब्द नय है। स्वोपज्ञ भाष्य में शब्द नय के तीन भेद बताये गये हैं 1. साम्प्रत 2. समभिरूढ़ 3. एवंभूत । किन्तु साम्प्रत शब्द अधिक प्रचलित नहीं है। सामान्य " शब्द नय" ही प्रचलित है। (च) समभिरूढ़ नय जो शब्द जिस अर्थ में रूढ़ हो, उस को उसी रूप में यह नय ग्रहण करता है। जैसे "गौ ” शब्द के गमनादि अनेक अर्थ है, किन्तु यह "गाय" के अर्थ में रूढ़ है। अतः समभिरूढ़ नय गो शब्द गाय की ही विवक्षा करता है, अन्य अर्थों की नहीं करता । 1 23 (छ) एवंभूत नय यह केवल वर्तमान काल की क्रिया को ही ग्रहण करता है जैसे 'इन्द्र" को तभी इन्द्र कहना, जब वह ऐश्वर्य सहित हो "वज्रपाणि" तभी कहना, जब उसके हाथ में वज्र हो । | 24 श्रुत के दो उपयोग होते हैं सकलादेश और विकलादेश । सकलादेश को प्रमाण या स्याद्वाद कहते हैं। विकलादेश को नय कहते हैं। धर्मान्तर की अविवक्षा से एक धर्म का कथन, विकलादेश कहलाता है। स्याद्वाद या सकलादेश द्वारा सम्पूर्ण वस्तु का कथन होता है। नय अर्थात् विकलादेश द्वारा वस्तु के एक देश का कथन होता है। सकलादेश में वस्तु के समस्त धर्मों की विवक्षा होती है। विकलादेश में एक धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों की विवक्षा नहीं होती। विकलादेश इसलिए सम्यक् माना जाता है कि वह अपने विवक्षित धर्म के अतिरिक्त जितने भी धर्म हैं उनका प्रतिषेध नहीं करता। अपितु उन धर्मों के प्रति उसका उपेक्षा भाव होता है। शेष धर्मों से उसका कोई प्रयोजन नहीं होता । प्रयोजन के अभाव में वह उन धर्मों का न तो विधान करता है और न निषेध । सकलादेश और विकलादेश दोनों की दृष्टि में साकल्य और वैकल्य का अन्तर है । सकला का विवक्षा सकला धर्मों के प्रति है। जबकि विकलादेश की विवक्षा विकल धर्म के प्रति है यद्यपि दोनों यह जानते हैं कि वस्तु अनेक
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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