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________________ (rxii) अथवा स्वरूप; आत्मा के पर्याय; जीव की अवस्थाएँ; चौदह गुणस्थान; चौदह मार्गणाएँ एवं आठ अनुयोग; जीव के औदारिकादि शरीर; समीक्षा तृतीय अध्याय आदिपुराण में नरक स्वर्ग विमर्श 104-151 नरक एवं स्वर्गः नरक और उसके प्रकार; नरक (अधोलोक); नारकों की संख्या; नरक में जाने के हेतु; कौन से जीव नरक में जाते हैं; कौन से जीव कौन सी नरक में आते हैं; नरक में जीवों की उत्पत्ति; नरक में नारकी जीवों की वेदनाएँ; नरक में बिलों की गिनती; नारकियों की आयु; नारकी जीवों के शरीर का परिमाण; नारकी जीवों के शरीर की आकृति; नारकी जीवों में लेश्याएँ; नारकी जीवों में रस और दुर्गन्ध; नारकी जीवों के शरीर का स्पर्श; नारकियों के रूप; नारकियों का आहार; कौन सी नरक से निकले जीव कौन सी अवस्था को प्राप्त होते हैं; मध्यलोक - (तिर्यक् लोक); देव एवं स्वर्गलोक (ऊर्ध्वलोक); देव और उनकी उत्पत्ति; देवलोक में देवों की उत्पत्ति; देवों के प्रकार; स्वर्ग की परिभाषा; स्वर्ग लोक की स्थिति; स्वर्गों में इन्द्रादि देवों के दश भेद; देवों में दुःख का कारण; स्वर्ग छोड़ने से पूर्व देवताओं की स्थिति; अहमिन्द्र का लक्षण और विशेषताएँ; अहमिन्द्रों की विशेषताएँ; छब्बीस स्वर्गों का स्वरूप; समीक्षा चतुर्थऽध्याय आदिपुराण में अजीव तत्त्व विमर्श 152-190 अजीव द्रव्य और उनके प्रकार 152 अजीव तत्त्व और उसके भेदोपभेद; कार्मण पुद्गल; कर्म की परिभाषा और उसके भेदोपभेद; कर्मबन्ध और उसके प्रकार; बन्ध के हेतु; समीक्षा; काल और उसके भेदोपभेद; काल परिमाण तालिका; समीक्षा
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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