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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 279
जै.द.स्व. और विश्ले. - दे.मु., पृ. 29
जै.ध.ए.अनु. - तत्त्वविद्या खण्ड, पृ. 29 62. योगाः पञ्चदश ज्ञेयाः सम्यग्ज्ञानविलोचनैः।
- आ.पु. 47.311 63. त.सू (के.मु.) 8.1 वि. 64. वही। 65. वही। 66. जै.द. (न्या. वि. श्री) पृ. 22 67. जै.द. (न्या.वि.श्री) पृ. 22 68. प्र.व्या.सूत्र (पं. श्री हेम.च.) उपोद् पृ. 7 69. रा.वा. 1.4.11 70. नय चक्र, 156%3B (क) आस्रवनिरोधः संवर
- त.सू. 9.1 (वि.) (ख) सर्वेषामास्रवाणां तु निरोधः संवरः स्मृतः।
- यो.शा 79 71. स. पुनर्भिधते द्वेधा द्रव्यभावविभेदतः।
- यो.श. 79-80 72. (क) भवहेतुक्रियात्यागः स पुर्भाव संवर।
- यो.श. 80 (ख) स्था. सू. 1.1.14 (ग) सर्वा. सि. 9.1 (घ) द्र.सं. 2.34
(ङ) पञ्चास्ति.का. 2.142 (अमृतचन्द्र वृत्ति) 73. त.सू. 9.1 (वि.) 74. यः कर्म पुद्गलादानच्छेदः स द्रव्यसंवर।
-- यो.श. 79-80 75. स्था.सू. 1.!.14 (विवेचनिका) 76. स गुप्तिसमितीधर्मसानुप्रेक्षं क्षमादिकम्। परीषहांजयन् सम्यक्वारित्रं चाचरच्चिरम्।।
- आ.पु. 20.206 स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः।
- त.सू. 9.23;
स्था.सू. 1.14 (वि.) 77. आ.पु. 4.15.3; 11.65%; 18.66%; 20.201; 34.195%; 36.117; 36.139 78. त.सू. (के.मु.) 9.4 (वि.)। 79. सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः
- त.सू. (के.मु.) 9.4; (वि.) 80. आ.पु. 18.66 (टीका); त.सू. (के.मु.) 9.4 (वि.) 81. त.सू. - (के.मु.) 9.4 (वि.) 82. जै.सि.को. - (भा. 4) पृ. 339 83. आ.पु. 11.65 टीका;