________________
280
जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गा समितयः।
- त.सू.9.5 84. त.सू. (के.मु.) 9.5 (वि.) 85. वही। 86. वही। 87. वही। 88. त.सू. (के.मु.) 9.5 (वि.) 89. व्रतस्थः समितीर्गुप्ती रादधेऽसौ सभावनाः। मात्राष्टकमिदं प्राहुः मुनेरिन्द्र सभावनाः।।
- आ.पु. 11.65 90. त.सू. (के.मु.) 9.6 (वि.) 91. अहिंसा सत्यवादित्वमचौर्य व्यक्तकामता। निष्परिग्रहता चेति प्रोक्तो धर्मः सनातनः।।
- आ.पु. 5.23 92. धर्मः प्राणिदया सत्यं क्षान्तिः शौचं वितृष्णता। ज्ञानवैराग्यसंपत्तिरधर्मस्तविपर्ययः।।
- आ.पु. 10.15 93. धियते धारयत्युच्चैः विनेयान् कुगतेस्ततः।
- आ.पु. 47.302 94. उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः।
- त.सू. 9.6 95. स भेजे मतिमान् शान्तिं परं मार्दवमार्जवम्।
शौचं च संयमं सत्यं तपस्त्यागौ च निर्मदः।। आकिञ्चन्यमथ ब्रह्मचर्यं च वदतां वरः। धर्मो दशतयोऽयं हि गणेशामभिसम्मतः।।
- आ.पु. 11.103-104 96. स्था.सू. 10.9 97. वही। 98. स्था.सू. 10.9 99. त.सू. (के.मु) 9.6 वि. 100. वही। 101. वही। 102. धवला - 7/2, - 1/3.7/3 103. पंच संग्रहः प्राकृत गाथा 127 104. बारस अणुवेक्खा - गाथा सं. 76 105. स्था.सू. - 10.9 (वि.) 106. वही। 107. त.सू. (के.मु.) 9.6