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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप.... 273
जो कच्चे मूल, फल, शाक, शाखा, करीर, जमीकन्द, पुष्प और बीज नहीं खाता है, इस प्रतिमा में सचित आहार का सर्वथा त्याग कर देता है। वह दया की मूर्ति सचित त्याग प्रतिमाधारी है।566
6. दिवा मैथुन त्याग प्रतिमा ( रात्रि भुक्ति त्याग प्रतिमा)
जैसा कि शब्द की ध्वनि से स्पष्ट हो रहा है कि श्रावक को चाहिए कि वह मर्यादा में रहे। अपनी स्त्री से मर्यादा में रहता हुआ रात्रि में ही भोगों का सेवन करे, दिन में कभी भी भोगों का सेवन न करे। इसे रात्रि भुक्ति त्याग प्रतिमा भी कहा जाता है।567
7. ब्रह्मचर्यप्रतिमा
जो मल के बीजभूत, मल को उत्पन्न करने वाले, मल प्रवाही, दुर्गन्धयुक्त, लज्जाजनक वा ग्लानि युक्त अंग को देखता हुआ काम-सेवन से विरक्त होता है, वह ब्रह्मचर्य प्रतिमा का धारी ब्रह्मचारी है।56
__ वे नौ प्रकार के मैथुन को सर्वथा त्याग करता हुआ (मन, वचन, काया से करना, करवाना, अनुमोदना करना यह ब्रह्मचर्य के 9 प्रकार हैं) इस प्रतिमा वाला स्त्री कथादि से भी निवृत्त हो जाता है। 69 इस प्रकार स्त्री सेवन का पूर्णरूप से त्यागी ही ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी श्रावक बन सकता है।
ब्रह्मचर्य प्रतिमा के धारक के लिए स्त्रियों से अनावश्यक वार्तालाप, उनके श्रृङ्गार तथा चेष्टाओं को देखना भी निषेध है।570 8. आरम्भ त्याग प्रतिमा
जो जीव हिंसा के कारण नौकरी, खेती, व्यापारादि के आरम्भ से विरक्त है, वह आरम्भ त्याग प्रप्तिमाधारी है।7। अथवा जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृहस्थ सम्बन्धी आरम्भ होता है, वह आरम्भ से निवृत्त हुई है बुद्धि जिसकी, ऐसा आरम्भ त्यागी आठवीं प्रतिमाधारी श्रावक कहा गया है।572
9. परिग्रह प्रतिमा
जो बाह्य के दश प्रकार के परिग्रहों में ममता को छोड़कर निर्ममता में रत होता हुआ मायादिरहित स्थिर और सन्तोष वृत्ति धारण करने में तत्पर है वह सचित परिग्रह से विरक्त अर्थात् परिग्रह त्याग प्रतिमा का धारक है। अथवा जो