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________________ से दोनों मासी जी हैं। जिन्होंने मुझे संसार की दलदल से निकालकर वीतराग पथ की पथिका बनाकर सदैव अध्ययन में रत रहने का पावन सन्देश दिया, जिनकी सतत् प्रेरणा व अन्तरंग आशीर्वाद से मैं इस लेखन कार्य के योग्य हुई हूँ और संयम के मार्ग में सतत् आगे बढ़ती रही हूँ। उन्हीं के अनन्त उपकारों की मैं सदैव उपकृत हूँ। उन्हीं की सद्भावनाएँ मेरे लिए मार्गदर्शन बनी। हृदय की असीम आस्था से अत्यन्त आभारी हूँ, ऋणी हूँ साथ ही तप रत्नेश्वरी शासन प्रभाविका तप्त तपस्विनी महासती डॉ. श्री सुनीता जी म., शासन ज्योति तपस्विनी महासती श्री उषा जी म. की भी मैं बहुत आभारी हूँ जिन्होंने समय-समय पर मुझे अपना सहयोग प्रदान दिया। सेवा के हर कार्य में सदैव तत्पर रही हैं। समस्त साध्वी मण्डल का साधुवाद करना भी मैं अपना कर्त्तव्य समझती हूँ जिनका यथायोग्य योगदान मुझे हर समय हर स्थिति में मिलता रहा है। मैं अपने विद्वान् एवं कुशल निर्देशक दर्शन ने विद्वान डॉ. श्री प्रेम लाल शर्मा की भी बहुत आभारी हूँ जिन्होंने अपना अमूल्य समय देकर मेरे इस शोधकार्य को उत्साह, लग्न और पुरुषार्थ से सम्पन्न करवाया। डॉ. साहब ने हमारी साध्वी-जीवन की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए, गर्मी-सर्दी व दुःख-सुख की परवाह न करते हुए सदैव हमारे स्थान पर व होशियारपुर से बाहर आकर मुझे मार्गदर्शन देते रहे। उनकी सेवाएँ, कर्त्तव्यनिष्ठता और परोपकार हम कभी भी विस्मृत नहीं कर सकते। मैं अन्त:करण से उनका बहुत-बहुत धन्यवाद करती हूँ और सदैव उनकी आभारी रहूँगी। साथ ही प्रोफेसर श्रीइन्द्र दत्त उनियाल जी डाइरेक्टर, विश्वेश्वसनन्द वैदिक शोध संस्थान होशियारपुर भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने हमें योग्य और विद्वान निर्देशक की सलाह दी तथा स्वयं भी समय-समय पर हमारी कठिन समस्याओं का समाधान अपना कीमती समय देकर करते रहे। आपका धन्यवाद करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं है। आपका सद्भाव, परोपकारिता, गृहीतव्रतता एवं वैदुष्य हमें सदैव स्मरणीय रहेगा। पंजाबी विश्वविद्यालय के विद्वान् डॉ. श्री धर्मसिंह जी की भी मैं अन्त:करण से अत्यधिक आभारी हूँ जिन्होंने मुझे इस योग्य बनाया और इस लक्ष्य तक पहुँचाया। उनकी अध्यापन सम्बन्धित सेवाएँ मैं कभी भी भुला नहीं सकती। उनकी सद्भावना, सतत् सहयोग अन्तरंग प्रेरणा ही मेरे लिए कदम कदम पर सहयागी रहीं हैं। डॉ. संजय जैन (पटियाला निवासी) का भी धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने मेरे अध्ययन कार्य में बहुत सहयोग दिया है तथा अपना अमूल्य समय देकर
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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