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अणुव्रत
. अणु शब्द अण् धातु से उण् प्रत्यय लगाने से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है - बारीक, नन्हा, लघु । महाव्रतों की अपेक्षा गुण और साधना की दृष्टि से छोटा व्रत अणुव्रत है। कारण यह है कि श्रमणों के महाव्रतों की अपेक्षा से ये व्रत श्रावकों के लिए अल्प अर्थात् स्थूल रूप से पालनीय होते हैं। अतः अणुव्रत कहलाते हैं। 539
जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
स्थूल हिंसादि दोषों से निवृत्त होने को अणुव्रत कहते हैं। 540 हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह पाँचों पापों का त्याग करना । परन्तु यह श्रावक के अणुव्रत होने से तीन योग ( मन-वचन-काया) और दो करण (करना, करवाना) से त्याग किया जाता है। किन्तु अनुमोदना खुला रहता है।
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साधक (मुनि) सर्वतः पापों का त्याग करता है, पर गृहस्थ श्रावक इतनी उच्च भूमिका पर पहुँचा नहीं होता उसे पारिवारिक - सामाजिक दायित्व भी पूरे करने होते हैं। वह मूलव्रतों की अंशतः साधना कर पाता है। उसे अणुव्रत कहते हैं। 541
दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ चारित्रसार में रात्रि भोजन त्याग को श्रावक का छठा अणुव्रत माना गया है। सर्वार्थसिद्धि में यद्यपि भोजन त्याग की गणना छठे अणुव्रत के रूप में नहीं की गई है, फिर भी वहाँ यह कहा गया है कि 'अहिंसा व्रत की' " आलोकित भोजनपान" भावना में रात्रि भोजन विरमण व्रत का अन्तर्भाव हो जाता है | 542
2. तीन गुणव्रत
गुणव्रत - गुणों को बढ़ाने के कारण आचार्यगण इन व्रतों को गुणव्रत कहते हैं। 43 गुणव्रत तीन प्रकार के हैं
(क) दिग्व्रत गुणव्रत (ख) देशविरति गुणव्रत (ग) अनर्थदण्डविरमण
व्रत 1544
(क) दिग्व्रत
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण ये चार दिशाएँ, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य - चार विदिशाएँ, ऊर्ध्व दिशा, अधोदिशा कुल 10 दिशाएँ हैं । भिन्न-भिन्न प्रवृत्तिविषयक कार्यक्षेत्र को सीमित बनाने के लिए दिशाओं की मर्यादा बाँधना
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