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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 267
उपर्युक्त पाँच महाव्रत साधु-सन्यासियों के लिए हैं। परन्तु श्रावक (गृहस्थ) के लिए अणुव्रतों का विधान है। वह अणुव्रत बारह कहे गये हैं - श्रावक धर्म
गृहस्थ धर्म का दूसरा नाम श्रावक धर्म कहा है। गृहस्थ धर्म का पालन करने वाला पुरुष “श्रावक" और स्त्री "श्राविका" कहलाती है। "श्रावक" शब्द श्रवण अर्थ वाले "श्रु" धातु से बना है। श्रवण करना अर्थात् आत्म कल्याण के मार्ग को रसपूर्वक सुने वह श्रावक श्राविका है। श्रावक के अर्थ में "उपासक" शब्द भी प्रयुक्त हुआ है।533 श्रावक के बारह अणुव्रत कहे गये
(क) पाँच अणुव्रत (ख) तीन गुणव्रत (ग) चार शिक्षाव्रत।534
(क) पाँच अणुव्रत
1. अहिंसाणुव्रत 2. सत्याणुव्रत 3. अचौर्याणुव्रत 4. ब्रह्मचर्याणुव्रत 5.परिग्रह परिमाणाणुव्रत।535 (ख) तीन गुणव्रत
1. दिग्विरति गुणव्रत 2. देश विरति गुणव्रत 3. अनर्थ दण्डविरति गुणवत।536
(ग) चार शिक्षाव्रत
__ 1. सामायिक 2. पोषधोवास 3. अतिथिसंविभाग 4. मरण समय में संथारा धारण करना।537
1. पाँच अणुव्रत
अणुव्रत पाँच प्रकार के होते है -
स्थानाङ्ग सूत्र में अणुव्रत के लिये और विरमण शब्द का प्रयोग भी किया गया है। अणुव्रत पाँच प्रकार के है।
१. स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत 2. स्थूल मृषावाद विरमणव्रत 3. स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत 4. स्वदार सन्तोष व्रत 5. परिग्रह परिमाणव्रत कहे जाते
है।538