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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
इस विवेकपूर्वक सभी शारीरिक क्रियाएँ करना ईर्यासमिति है और इस विचार का अनुचिन्तन ईर्या समिति भावना है।510
(घ) काय नियन्त्रण या आदान निक्षेपण समिति - इसका अभिप्राय है - किसी वस्तु उपकरण आदि को भली-भान्ति देखभाल कर उठाना और रखना, जिससे किसी प्राणी की विराधना न हो और उपकरणादि भी अधिक समय तक सुरक्षित रहें। उपकरण उठाने रखने में किसी जीव की विराधना न हो सतत ऐसा चिन्तन रखना आदान निक्षेपण भावना है।17
(ङ) आलोकित पान भोजन - इसका अभिप्राय है - सूर्य के प्रकाश में भोजन पान से निवृत्त हो जाना, सूर्यास्त होने के बाद कुछ भी खाने और पीने की भावना न रखना आलोकित पान-भोजन भावना है।
अंधकार में भोजन-पात्र से जीवों की विराधना तो होती ही है, साथ ही अपने स्वयं के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, विषैला जन्तु खाने से अनेक प्रकार के रोग हो सकते हैं।518
अतः अहिंसाव्रत के साधक को यह पाँच भावनाएँ भानी चाहिएँ जिससे उसका व्रत स्थिर रहे।
2. सत्यव्रत की पाँच भावनाएँ
(क) क्रोध (ख) लोभ (ग) भय (घ) हास्य (ङ) अनुवीचि भाषण।19
(क-ख-ग-घ) क्रोध-लोभ-भय-हास्य-त्याग - क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों के आवेग में मुख से कोई वचन न निकल जाये, ऐसा अनुचिन्तन मन में करते रहना। इन दुर्गुणों को निकालने का प्रयत्न करना/सत्यव्रत की भावनाएँ हैं।520
(ङ) अनुवीचि भाषण (शास्त्रानुसार वचन कहना) - पाप रहित और शास्त्र में बताई मर्यादा सहित, विचारपूर्वक वचन बोलने की भावना रखना अनुवीचि भाषा भावना है।521 3. अस्तेय (अचौर्य) व्रत की पाँच भावनाएँ
(क) थोड़ा आहार लेना (ख) तपश्चरण के योग आहार लेना (ग) श्रावक के प्रार्थना करने पर आहार लेना