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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
जिन्होंने स्वेच्छा से घर गृहस्थी जैसे जंजाल का परित्याग कर दिया है, वे अनगार कहलाते हैं । अनगार को पाँच महाव्रतों का पालन अनिवार्य होता है। वह इन्हें सूक्ष्म एवं गम्भीरतापूर्वक आचरण करता है और इसी कारण वे महाव्रती कहलाते हैं।
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आदिपुराण में इन्हीं व्रतों 99 को महाव्रत और अणुव्रत नाम दिया गया हैं। आंशिक विरक्ति या एक देश व्रत अणुव्रत है। सर्वतः विरक्ति 500 या सर्वदेशव्रत महाव्रत है।
(क) महाव्रत सूक्ष्म तथा स्थूल सभी प्रकार के हिंसादि पापों का त्याग करना महाव्रत कहलाता है |501
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सर्वत: - पूरी तरह विरक्ति होना महाव्रत है या सर्वथा व्रतों का पालन करना महाव्रत है। 502 महाव्रत ग्रहण करने वाला साधक तीन करण-करना, करवाना अनुमोदना - और तीन योग मन, वचन, काया से व्रत हिंसादि दोषों का त्याग करता है। 503
आंशिक विरक्ति अंशरूप में विरक्ति होना अणुव्रत है। सर्वथा नहीं, एकदेशव्रत विरति होना अणुव्रत कहलाता है। 504
स्थूल हिंसादि दोषों से निवृत्त होने को अणुव्रत कहते हैं । 505
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अणुव्रती श्रावक सामान्यतया तीन योग ( मन, वचन, काया) और दो करण (कृत, कारित) अनुमोदना को खुला रखकर व्रत ग्रहण करता है |506
तात्पर्य यह है कि अहिंसादि व्रतों के पालन का विधान शास्त्रों में गृहस्थ और साधक दोनों के लिये है, परन्तु गृहस्थ के लिये व्रतों का पालन असम्भव है, व्रतों का सर्वथा पालन तो साधु ही कर सकता है। अतः गृहस्थ की अपेक्षा ये अणुव्रत है और साधु की अपेक्षा इनकी संज्ञा महाव्रत है। महाव्रत पाँच प्रकार के कहे गए हैं307
(क) अहिंसा व्रत (ख) सत्य व्रत (ग) अस्तेय व्रत (घ) ब्रह्मचर्य व्रत (ङ) अपरिग्रह व्रत।
मन, वचन और शरीर के द्वारा स्थूल तथा सूक्ष्म निवृत्त होना अहिंसा - व्रत अर्थात् पहला व्रत है 1508 (ख) सत्य व्रत मन, वचन और शरीर के द्वारा किसी प्रकार का भी
मिथ्याभाषण न करना दूसरा सत्य व्रत है।
(क) अहिंसा व्रत
रूप सर्व प्रकार की हिंसा से
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