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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण समीक्षा
विधि, देयवस्तु, दाता और ग्राहक की विशेषता से दान की विशेषता है। विधि की विशेषता में देश, काल का औचित्य और लेने वाले के सिद्धान्त में बाधा न पहुँचे, ऐसी कल्पनीय वस्तु का अर्पण इत्यादि बातों का समावेश होता है। द्रव्य की विशेषता में दी जाने वाली वस्तु के गुणों का समावेश होता है। जिस वस्तु का दान किया जाये, वह वस्तु लेने वाले पात्र की जीवन यात्रा में पोषक होकर परिणामतः उसके निजी-गुण विकास में निमित्त बनें।
दाता की विशेषता में देने वाले पात्र के प्रति श्रद्धा न होना, तथा दान देते समय या बाद में विषाद न करना इत्यादि दाता के गुणों का समावेश होता हैं। दान लेने वाले का सत्पुरुषार्थ के लिए ही जागरूक रहना पात्र की विशेषता है। पुण्य प्राप्ति के लिए श्रद्धदि गुणों सहित जो दान देता है, वह दाता कहलाता है। दान के लिए जो वस्तु दी जाती है, उसे देय कहते हैं। आहार, दान, औषधि दान, शास्त्रदान, अभयदान। यह चार प्रकार की वस्तुएँ देय हैं। उपर्युक्त दान देन से जीव को ममत्व भाव कम होता है। वह धीरे-धीरे विरक्त होने लगता है।