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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप.... 255
(ख) औषध दान
उपवास, व्याधि, परिश्रम और क्लेश से परिपीडित जीव को देखकर उसके शरीर के योग्य दवाई देना, औषधि देना औषध दान है।461
(ग) शास्त्र दान या ज्ञान दान
___ आगम-शास्त्र को लिखाकर या छपवाकर यथायोग्य पात्रों को दिये जाते हैं वह शास्त्र दान हैं और जिन-वचनों का पढ़ाना, अध्ययन करवाना, आध्यात्मिक ज्ञान को देना शास्त्र दान है। सर्व प्राणियों के लिए जो ज्ञान का उपदेश दिया जाता है वह शास्त्र दान या ज्ञान दान है।462
(घ) अभय दान
मरण से भयभीत अमूक जीवों की जो प्रतिदिन रक्षा की जाती है, यह सब दानों में श्रेष्ठ दान है। जिस पर अनुग्रह करना आवश्यक है, ऐसे दु:खी प्राणियों को दयापूर्वक मन, वचन, काय की शुद्धता से रक्षा करना "अभयदान" है। अथवा दानान्तराय कर्म के अत्यन्त क्षय से अनन्त प्राणियों के समुदाय का उपकार करने वाला क्षायिक अभयदान होता है।463
विवेकवान् संयमी पुरुष जो प्राणियों पर दयाभाव रखते हैं वही प्राणियों को भय से रहित करते हैं, अर्थात् जीवन दान दे सकते हैं। जो संयम पालन में विवेकपूर्वक क्रिया करने वाले और सब प्राणियों को भय से रहित अर्थात् मौतरूपी भय से रहित करते हैं उसे अभय कहते हैं। उन्हें जीवन का दान देना अभयदान है। सभी का हित चाहने वाले हितेषी, दयावान् पुरुष ही अभय का दान देते हैं।464
अपात्र का लक्षण और फल
जो व्रत, शीलादि से रहित मिथ्यादृष्टि है, वह पात्र नहीं माना गया है अर्थात् अपात्र है। जो मनुष्य अपात्र को दान देता है वे कुमनुष्य कुयोनियों में जन्म लेते हैं। जिस प्रकार कच्चे बर्तन में रखा हुआ गन्ने का रस अथवा दूध स्वयं नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार अपात्र के लिए दिया हुआ दान स्वयं नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार अपात्र के लिए दिया हुआ दान स्वयं नष्ट हो जाता है अर्थात् व्यर्थ ही उपयोग में आता है और लेने वाले पात्र को भी नष्ट कर देता है। अहंकारादि से युक्त बनाकर विषय-वासनाओं में फंसा देता है।465