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________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप.... 251 जिस ऋद्धि के द्वारा श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तराय इन दो प्रकृतियों का उत्कृष्ट क्षयोपशम होने पर अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर सम्पूर्ण श्रुत का चिन्तन करता है या जानता है, वह मनोबल ऋद्धि है।437 (ख) वचन बल ऋद्धि - वचन बल ऋद्धि के प्रभाव से महान् साधक सम्पूर्ण द्वादशाङ्ग के शब्दों का अन्तर्मुहूर्त मात्र में उच्चारण कर लेता है, वह सभी वचन बल से ही सम्भव हो सकता है।438 जिह्वेन्द्रियावरण, नोइन्द्रियावरण, श्रुतज्ञान और वीर्यान्तराय का उत्कृष्ट क्षयोपशम होने पर जिस ऋद्धि के प्रकट होने से मुनि श्रमरहित और अहीनकंठ होता हुआ मुहूर्तमात्र काल के भीतर सम्पूर्ण श्रुत को जानता व उसका उच्चारण करता है, उसे वचनबल नामक ऋद्धि कहते हैं।439 (ग) कायबल ऋद्धि - इस ऋद्धि के प्रभाव से साधक शरीर सम्बन्धी अतुल्य बल से सहित होता है।440 जिस ऋद्धि के बल से वीर्यान्तराय प्रकृति के उत्कृष्ट क्षयोपशम की विशेषता होने पर मुनि, मास व चातुर्मासादि रूप कायोत्सर्ग को करते हुए भी श्रम से रहित होते हैं तथा शीघ्रता से तीनों लोकों को कनिष्ठ अंगुली के ऊपर उठाकर अन्यत्र स्थापित करने के लिए समर्थ होते हैं. वह कायबल नामक ऋद्धि है।441 7. क्षेत्र ऋद्धि क्षि धातु का अर्थ है -- निवास करना। जिसमें पुद्गलादि द्रव्य निवास करते हैं उसे क्षेत्र कहते हैं।442 वर्तमान काल विषयक निवास को क्षेत्र कहते हैं।443 जितने स्थान में स्थित भावों को जानता है वह नाम क्षेत्र है।444 स्थान के बारे जो ऋद्धि प्राप्त होती है वह क्षेत्र ऋद्धि है। क्षेत्र ऋद्धि के दो भेद होते हैं (क) अक्षीण महानस ऋद्धि (ख) अक्षीण महालय ऋद्धि। (क) अक्षीण महानस क्षेत्र ऋद्धि - जिस ऋद्धि से कोई वस्तु या स्थान क्षीण न हो वह अक्षीण महानस ऋद्धि है। भोजनशाला में खा लेने पर भी उस भोजन को चक्रवर्ती के कटक को खिलाने पर भी क्षीण नहीं होता, और छोटे से स्थान में भी बैठकर धर्मोपदेश आदि दे तो भी उस स्थान पर समस्त मनुष्य और देव आदि के बैठने पर भी वह स्थान कम नहीं होता।445 लाभान्तरायकर्म के क्षयोपशम से संयुक्त जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के आहार में से शेष, भोजनशाला में रखे हुए अन्न में से जिस किसी भी प्रिय
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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