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आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 249
(घ) मल्ल औषध ऋषि - मल्ल औषधि के प्रभाव से जिह्वा, ओंठ, दांत, नासिका और श्रोत्रादि का मल जीवों के रोगों को नष्ट करने वाला है। इसलिए यह मल्ल औषधि ऋद्धि है।419
(ङ) विट् औषध ऋषि (वाग्विपुट औषधि) - वारविपुट औषधि को जिस साधक ने प्राप्त कर लिया है, उस साधक के मुख से निकली हुई वायु समस्त रोगों को नष्ट कर सकती है।420
(च) सर्वऔषध ऋषि - इस ऋद्धि के बल से दुष्कर तप से युक्त मुनियों का स्पर्श किया हुआ जल व वायु तथा उनके रोम और नखादिक व्याधि के हरने वाले हो जाते हैं, ऐसी सर्वौषधि नामक ऋद्धि है।421 अर्थात् शरीर को स्पर्श कर बहती हुई वायु समस्त रोगों को नष्ट कर देती है।
(छ) वचननिर्विष औषध ऋद्धि - जिस ऋद्धि के प्रभाव से तिक्तादिक रस व विष से युक्त विविध प्रकार का अन्न वचन मात्र से ही निर्विषता को प्राप्त हो जाता है, वह वचननिर्विष नामक ऋद्धि है।422 अथवा जिस ऋद्धि के प्रभाव से बहुत व्याधियों से युक्त जीव, ऋषि के वचन को सुनकर ही झट से निरोग हो जाया करते हैं, वह वचनर्निविष ऋद्धि हैं।423
(ज) आस्याविष औषध ऋद्धि - इस ऋद्धि के प्रभाव से उग्रविष से मिला हुआ आहार भी जिनके मुख में जाकर निर्विष हो जाता है अथवा मुख से निकले हुए वचन के सुनने मात्र से महाविष व्याप्त भी कोई व्यक्ति निर्विष हो जाता है, वे आस्याविष है।
(झ) दृष्टिनिर्विष औषधि ऋद्धि - रोग और विष से युक्त जीव जिस ऋद्धि के प्रभाव से झट देखने मात्र से ही निरोगता और निर्विषता को प्राप्त कर लेते हैं, वह दृष्टिनिर्विष ऋद्धि है।424
5. रस ऋद्धि
इस ऋद्धि के प्रभाव से साधक घी, दूध आदि रसों का त्याग करने की प्रतिज्ञा से भी घी, दूध आदि झरने वाली अनेक रस ऋद्धियाँ प्राप्त होती हैं, अर्थात् इष्ट पदार्थों के त्याग करने से उनसे अधिक महाफलों की प्राप्ति होती है।425
जिस ऋद्धि के द्वारा मुनि प्रत्येक खाद्य पदार्थ में रस की वृद्धि करा दें वह रस ऋद्धि कहलाती है। अर्थात् शुष्क भोजन में भी घी आदि स्रवणशील द्रव्य की प्राप्ति कराने वाली ऋद्धि रस ऋद्धि है। इसके चार भेद हैं126 -