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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण
सब जीवों तथा ग्राम, नगर एवं खेड़े आदिकों के भोगने की जो शक्ति उत्पन्न होती है वह ईशित्व ऋद्धि कही जाती है।
इस ऋद्धि के प्रभाव से चक्रवर्ती के समान महान् विभूति को प्राप्त कर सकता है। वह ईशित्व ऋद्धि है।
(ज) वशित्व ऋद्धि - इस ऋद्धि में साधक अपने तपोबल से जीव समूहवश में कर लेता है और मनुष्य, हाथी, सिंह एवं घोड़े आदिक रूप अपनी इच्छा से विक्रिया करने की अर्थात् उनका आकार बदल देने की शक्ति का नाम वशित्व ऋद्धि है।
इस ऋद्धि से विरोधी जीवों को भी वश में कर सकता है।412
4. औषधि वाली ऋद्धियाँ
जिस ऋद्धि के द्वारा साधक असाध्य रोग को शान्त कर दें उसे औषधीय ऋद्धि कहते हैं।413 औषध ऋद्धि आठ प्रकार की है
(क) आमर्ष औषध ऋषि (ख) क्ष्वेल औषध ऋषि (ग) जल्ल औषध ऋषि (घ) मल्ल औषध ऋषि (ङ) विट् औषध ऋषि (वारविपुट औषधि) (च) सर्व औषध ऋषि (छ) आस्याविष औषध ऋषि (ज) दृष्टिविष औषध ऋषि।414
(क) आमर्ष औषध ऋषि - इस ऋद्धि से साधक के पास अनेक प्रकार की औषधियाँ उपलब्ध हो जाती हैं। जिनमें आमर्ष ऋद्धि से तप के प्रभाव से साधक के वमन की वायु अनेक रोगों को नष्ट कर सकती हैं।415 अथवा इस ऋद्धि के धारक ऋषियों के पास जाकर उनके हस्त या पैर का स्पर्श करने मात्र से ही जीव की काया निरोगी हो जाती है। अर्थात् रोग से मुक्त हो जाता है।416
(ख) श्वेल औषध ऋषि - इस ऋद्धि के प्रभाव से तपस्वी मुनि-जनों का कफ भी औषधि का कार्य करता है। तपस्वी के मुख से निकले हुए कफ को स्पर्श कर बहने वाली वायु सब रोगों को हर लेती है। यह श्वेल औषधि
है।417
(ग) जल्ल औषध ऋषि - पसीने के आश्रित अंगरज को जल्ल कहा जाता है। जिस ऋद्धि के प्रभाव से उस अंगरज से भी जीवों के रोग नष्ट हो जाते
हैं।118