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जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण धूमचारण ऋद्धि - जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधक नीचे, ऊपर और तिरछे फैलने वाले धुएँ का सहारा लेकर अस्खलित पादक्षेप देते हुए गमन करते हैं वह धूम चारण ऋद्धि है।394
मेघचारण ऋद्धि - जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधक बहुत प्रकार के मेघों पर से गमन करते हैं वह अपकाय जीवों को पीड़ा नहीं पहुँचाते वह मेघचारण ऋद्धि है।395
धाराचारण ऋद्धि - जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि मेघों से छोड़ी गयी जनधाराओं पर गमन करते हैं वह जल के जीवों को कष्ट नहीं पहुँचाते, वह धारा चारण ऋद्धि है।396
मकड़ी तन्तु चारण ऋद्धि - जिस ऋद्धि से मुनिजन मकड़ी के तन्तुओं की पंक्ति पर से गमन करते हैं, वे मकड़ी तन्तु चारण ऋद्धि है।97
ज्योतिश्चारण ऋद्धि - जिसमें तपस्वी नीचे, ऊपर और तिरछे फैलने वाली ज्योतिषी देवों के विमानों की किरणों का अवलम्बन करके गमन करते है।, वे ज्योतिश्चारण ऋद्धि है।398
मारुत चारण ऋद्धि - जिस ऋद्धि से मुनिजन नाना प्रकार की गति से युक्त वायु के प्रदेशों की पंक्तियों पर अस्खलित होकर पदविक्षेप करते हैं, वह मारुतचारण ऋद्धि है।399
(ख) आकाशगामिनी चारण ऋद्धि
जिस ऋद्धि के प्रभाव से पर्यंकासन में बैठकर या अन्य किसी भी आसन में बैठकर या कायोत्सर्ग शरीर से पैरों को धरती से उठाकर तथा बिना पैरों को उठाये - आकाश में गमन करने में जो कुशल होते हैं वे आकाशगामिनी चारण ऋद्धि के धारक होते हैं।
आकाश, में इच्छानुसार मानुषोत्तर पर्वत से घिरे हुए इच्छित प्रदेशों में गमन करने वाले आकाशगामी होते हैं।
चार अंगुल से अधिक प्रमाण में भूमि से ऊपर आकाश में गमन करने वाले ऋषि आकाश-चारण कहे जाते हैं। यह आकाश चारण ऋद्धि का प्रभाव है जो आकाश में गमन कर सकते हैं।400 2. वैक्रिय ऋद्धि01
जिस ऋद्धि के प्रभाव से योगी अपने शरीर को छोटे बड़े, हल्के भारी