SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिपुराण में पुण्य-पाप आस्रव संवर, निर्जरा, निर्जरा के हेतु तप... 245 जल को छूये बिना इच्छानुसार भूमि के समान जल में गमन करने में जो समर्थ हैं और समुद्र के मध्य में दौड़ता है फिर भी जल में रहने वाले जीवों की विराधना नहीं होती वे जल चारण ऋद्धि होती है।386 (र) जंघा चारण ऋद्धि - इस ऋद्धि में प्रभाव से महर्षि बिना कदम उठाये ही आकाश में गमन कर सकते हैं। चार अंगुल प्रमाण पृथ्वी को छोड़कर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना या (जल्दी-जल्दी जंघाओं को उत्क्षेप निक्षेप करते हुए) जो बहुत योजनों तक गमन करता है, वे ऋद्धि जंघा चारण ऋद्धि होती है।387 __ (ल) फलचारण ऋद्धि - इस ऋद्धि से साधक वृक्षों पर लगे फलों पर गमन कर सकते हैं। गमन करने पर भी वनस्पतिकाय जीवों को कोई पीड़ा होती और फलों पर चलने पर भी फल टूटकर भूमि पर नहीं गिरते।388 (व) श्रेणी चारण ऋद्धि - इस ऋद्धि से साधक आकाश में श्रेणीबद्ध गमन कर सकते हैं और बीच में आये हुए पर्वत आदि भी उसे रोक नहीं सकते।389 (श) तन्तु चारण ऋद्धि - इस ऋद्धि से साधक सूत अथवा मकड़ी के जाल के तन्तुओं पर गमन कर सकता है। गमन करने पर भी जाल टूटते नहीं। ऐसी तन्तु चारण ऋद्धि होती है।390 (ष) पुष्पचारण ऋद्धि - इस ऋद्धि के प्रभाव से ऋषिजन पुष्पों कर गमन कर सकते हैं। गमन करने पर भी भार से पुष्प टूटते नहीं। न ही पुष्पों में रहने वाले जीवों को कोई वेदना होती है। पत्र, अंकुर, तृण और प्रवाल आदि पुष्प में ही आते हैं। ऐसी ऋद्धि पुष्पचारण ऋद्धि होती है।91 ___ (स) अम्बर चारण ऋद्धि - इस ऋद्धि के प्रभाव से साधक आकाश में सर्वत्र गमनागमन कर सकता है। ये अम्बर चारण ऋद्धि है।392 तिलोय पण्णत्ति में उपरोक्त भेदों के अतिरिक्त चारण ऋद्धियों के भेदों का वर्णन किया गया है जैसे - अग्नि शिखाचरण, धूमचारण, मेघचारण, धाराचारण, मकड़ी तन्तुचारण, ज्योतिश्चारण, मारुतचारण ऋद्धियाँ हैं। (ह) अग्निशिखा चारण ऋद्धि - जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनिजन अग्नि शिखाओं पर गमन कर सकते हैं और अग्निशिखाओं के जीवों की विराधना नहीं करते ऐसी ऋद्धि अग्निशिखाचरण ऋद्धि है।393
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy