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________________ 242 जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में आदिपुराण ऋद्धि ऋद्धि का स्वरूप और उसके भेदोपभेद ऋद्धि का स्वरूप तपश्चरण के प्रभाव से कभी-कभी योगीजनों, तपस्वियों को कई चमत्कारिक शक्तियाँ उपलब्ध हो जाती हैं। उन्हें ऋद्धि कहते हैं । 361 यह सात 362 प्रकार की होती हैं 1. बुद्धि ऋद्धि 2. विक्रिया ऋद्धि 3 तप ऋद्धि 4. बल ऋद्धि 5. औषध ऋद्धि 6. रस ऋद्धि 7. क्षेत्र (अक्षीण) ऋद्धि 1363 1. बुद्धि ऋद्धि बुद्धि अवगम या ज्ञान को बुद्धि कहते हैं। 364 बुद्धि ऋद्धि चार प्रकार की होती हैं (क) कोष्ठ बुद्धि (ख) बीज बुद्धि (ग) पदानुसारी बुद्धि (घ) संभिन्न श्रोतृ बुद्धि | 365 - (क) कोष्ठ बुद्धि जिस प्रकार कोठे (धानागार) में अनेक प्रकार के धान्य भरे रहते हैं उसी प्रकार कोष्ठ बुद्धि वाले साधकों के हृदय में भी अनेक पदार्थों का ज्ञान भरा होता है 1366 उत्कृष्ट धारणा वाला पुरुष जो गुरु के उपदेश से नाना प्रकार के ग्रन्थों में से विस्तारपूर्वक लिंग सहित शब्द रूप बीजों को अपनी-अपनी बुद्धि से ग्रहण करके उन्हें मिश्रण के बिना बुद्धि रूपी कोठे में धारण करता है उसकी बुद्धि कोष्ठबुद्धि कही जाती है। 367 शालि, ब्रीहि, जौ और गेहूँ आदि के आधारभूत कोथली, पल्ली आदि का नाम कोष्ठ है। समस्त द्रव्य व पर्यायों को धारण करने रूप गुण से कोष्ठ के समान होने से उसे बुद्धि को भी कोष्ठ कहा जाता है। कोष्ठ रूप जो बुद्धि होने से कोष्ठ बुद्धि कहलाती है। 368 (ख) बीज बुद्धि जिस प्रकार उत्तम जमीन में बायो हुआ एक भी बीज अनेक फल उत्पन्न कर देता है उसी प्रकार बीज बुद्धि के धारण साधक आगम के बीज रूप एक दो पदों को ग्रहण कर अनेक प्रकार के ज्ञान को प्रकट कर लेते है वह बीज बुद्धि ऋद्धि है । 369
SR No.022656
Book TitleJain Darshan Ke Pariprekshya Me Aadipuran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSupriya Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Prakashan
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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